शुक्रवार, 8 मार्च 2013

शंकरानंद की कविताएँ

संक्षिप्त परिचयः-

 



 
       












          

           हमारे समय के युवा रचनाकारों में शंकरानंद एक महत्वपूर्ण नाम है। इनका जन्म  8 अक्टूबर 1983 में बिहार के खगड़िया जिले में हुआ है। इन्होंने हिन्दी साहित्य में एम0 ए0 किया है। अब तक इनकी रचनाएं  नया ज्ञानोदय, वागर्थ, वसुधा, वर्तमान साहित्य, कथन, वाक, आलोचना, बया, साक्षात्कार, परिकथा, कृति ओर, जनपक्ष, पक्षधर, आलोचना, वाक, स्वाधीनता (शारदीय विशेषांक) आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित। कहानियाँ, कथन, वसुधा, और परिकथा में प्रकाशित। समीक्षा शुक्रवार, द पब्लिक एजेंडा और पक्षधर में प्रकाशित। पहला कविता संग्रह ‘‘दूसरे दिन के लिए’’ भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता से प्रकाशित हो चुका है। 


        इनकी कविताएं जहां सीधे आम जनता से बात करती हैं। तो वहीं मजदूर
- किसानों से बात करती हुई खेत-खलिहानों में विचरण करती हैं। इनकी छत  नामक कविता सरकारी आवास योजनाओं पर एक करारा तमाचा तो है ही साथ ही भ्रष्टाचार की पोल को तार-तार भी करती है। इसी तरह कवि नक्शे  के माध्यम से बम में तब्दील होती पृथ्वी को बचाने की जुगत में है तो वहीं अराजक तत्त्व इसे नष्ट करने पर तूले हुए हैं। ये लोग पृथ्वी को क्यों नष्ट करना चाहते हैं। यह एक बहुत बड़ा सवाल है हमारे समय से। नक्शा, मजदूर, पतंग,किसान ,आत्महत्या ,अधपका सूर्य पर लिखी कविताएं भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।


        अपनी कविताओं में टटके बिंबों एवं शिल्प गठन की उच्च गुणवत्ता की वजह से छोटी कविताएं भी चुंबक की तरह अपनी ओर आकर्षित करती हैं। आप सुधीजनों के विचारों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।












        
 









शंकरानंद की कविताएँ
 
नक्शा
इसी से हैं सीमाएँ और
टूटती भी इसी के कारण हैं

बच्चे सादे कागज पर बनाकर
अभ्यास करते हैं इसका और
तानाशाह सिरहाने रखकर सो जाते हैं इसे

इसी से चुने जाते हैं ठिकाने और
इसी से तलाशी जाती है विस्फोट की जगह

छोटे से नक्शे
में दुनिया भी
सिमट कर रह जाती है
इतनी कि हर कोई इसे मुट्ठी में बंद करना चाहता है।

मजदूर

 
(नागेश याबलकर के मृदा शिल्प को देखकर)
मिट्टी की मूर्ति होकर भी जैसे जीवित है

उसका काम छीन लिया गया है
छीन ली गई है उसकी रोटी फिर भी वह
अपने औजार नहीं छोड़ रहा

न उसके चेहरे पर  उदासी है न आँसू
न हार है न डर
बस अपने हुनर पर है भरोसा  और
यह साफ झलक रहा है चेहरे से कि
किसी के सामने गिड़गिड़ाने की नहीं है कोई जरूरत

उसके पैर की नसें उभरी हैं
उँगलियों से निकले हैं नाखून
न जाने वह क्या सोच रहा है कि
चेहरे पर हँसी भी है और हाथों में बेचैनी भी

पता नहीं कब वह अपने औजार उठा ले और चल दे!

                      

पतंग 

 
कोई भी पतंग अंततः उड़ने के लिए होती है

ये और बात है कि
कोई उसे  दीवार से टाँग कर रखता है
कोई चपोत कर रख देता है कपड़ों के नीचे
कोई इतना नाराज होता है उसके उड़ने से कि
चूल्हे में ही झोंक देता है उसे

पतंग तो पतंग है
वह जहाँ रहती है वही फड़फड़ाती है!

किसान

जीवन का एक-एक रेशा
बह रहा पसीना की तरह
एक-एक साँस उफान पर है

उसके खून में आज भी वही ताप है
जो कीचड़ में धँसा बुन रहा है अपने दिन

धरती उसके बिना पत्थर है!

छत

 
सपनो के छत के नीचे भी गुजर रहे हैं दिन
कोई फूल का छत बनाता है कोई फूस का
कोई कागज को ही तान देता है

बेघर लोगों के पास जो है सो आँखों में हीं है
वे तारों को ऐसे देख रहे हैं जैसे छत!

आत्महत्या

 
भुट्टे के दाने में दूध भरा

उसके जुआने से पहले ही
कहीं कोयला सुलगा
कहीं नमक बना और
कई जोड़ी आँखें चमक गई

आग पर भुट्टा चुपचाप पक रहा है!


अधपका सूर्य

 
वह एक अजन्मा रंग था

वह था एक अधपका सूर्य
जो समय से पहले चल बसा

अगर जिन्दा होता तो
आज दिन कुछ और होता
कोई और होता वसंत!

सम्पर्क:-
शंकरानंद
क्रांति भवन, कृष्णा नगर, खगड़िया-851204
मो0-08986933049


E-mail- ssshankaranand@gmail.com


11 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तव मे कवि की प्रस्तुति और कथ्य अद्भुत है.सुंदर कवितायेँ ………….. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदर और मौलिक रचनाएँ ..बहुत -बहुत बधाई कवि मित्र को ....इन कविताओं को यहाँ प्रस्तुत करने के लिए चौहान जी को धन्यवाद .
    -नित्यानंद गायेन

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर कवितायेँ.. बहुत -बहुत बधाई...

    Anil kumar

    जवाब देंहटाएं
  4. hindi mein chote mein kavitha likhne ka chalan kam hai. Shankaranand chote mein gambhir kavitha likhte hain . Unhe badhayi .

    जवाब देंहटाएं
  5. Great post however I was wondering if you could write a litte more on this subject?
    I'd be very grateful if you could elaborate a little bit further. Cheers!

    My weblog :: free webcams

    जवाब देंहटाएं
  6. Great post however I was wondering if you could write a litte more on this subject?
    I'd be very grateful if you could elaborate a little bit further. Cheers!

    my web site; free webcams
    My web page > www.erovilla.com

    जवाब देंहटाएं
  7. अच्छी कविताएँ हैँ। सुमन शेखर

    जवाब देंहटाएं
  8. Itni umda kavitayein ek zamane se nahi padhi, kavi ki awaaz, virodh ki, ek kalakaar ki awaaz, sunayi di mujhe. Nakshe ko apni mutthi mein band karne ka zazba, ab bhi hai, logon ki zindgiyon ko mutthi mein band karne ka zazba hai. Bahut khoobsoorat hai kavita aapki, tewar uska, kaam se nikal diye jaane ke baad bhi, auzar thame rehne ki baat.Kalpanik chatoon ki Baat. Bahut bebaak swar mein azadi, khuddari ki baat. Badhai.

    जवाब देंहटाएं
  9. PAnkhuri jee apka iss blog par aana ek sukhad anubhuti karata hai..aapki kavitaon ka swagat hai....Aarsi chauhan

    जवाब देंहटाएं
  10. सशक्त कवितायें हैं . सभी कवितायेँ सहज व गंभीर हैं .संवेदना के तंतुओं को झकझोरती हैं कवितायें .

    जवाब देंहटाएं
  11. अति सुंन्दर कविताएँ..बधाई...

    जवाब देंहटाएं