सोमवार, 22 अप्रैल 2013

डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ की ग़ज़लें



                                              डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’
(1)

कोस-कोस सरकार को कोस।

महँगाई की मार को कोस।



चुनकर नेता किसने भेजा,

संसद की तकरार को कोस।



लूट-डकैती-हत्या-चोरी,

लोकतंत्र की धार को कोस।



कहीं अयाशी कहीं ग़रीबी,

जी भर पालनहार को कोस।



नाव डुबो दी रामलाल ने,

नाविक की पतवार को कोस।



कंधे ढीले पहले से थे,

उम्मीदों के भार को कोस।



(2)



मन में बोझ लिये बैठा हूँ।

सारा ज़हर पिये बैठा हूँ।



थोड़ी-सी ही उमर बहुत है,

सदियाँ कई जिये बैठा हूँ।



पाप नहीं मिट पाये अब तक,

यूँ तो होम किये बैठा हूँ।



बची रहे मर्यादा तेरी,

अपने होंठ सिये बैठा हूँ।



ढूँढ़ रहा हूँ प्यार अभी तक,

चौवन इश्क़ किये बैठा हूँ।



नहीं हुई सुनवाई अब तक,

अर्ज़ी कई दिये बैठा हूँ।







   € अध्यक्ष - ‘अन्वेषी’

       24/18, राधानगर, फतेहपुर (उ.प्र.) - 212601

      वार्तासूत्र - 9839942005, 8574006355

 


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