रविवार, 28 सितंबर 2014

प्रभात की आयी है बहार : डॉ.सुनील जाधव



                                                                                 डॉ.सुनील जाधव
1.प्रात: बेला...

एक साथ उड़ते एक साथ मुड़ते
पुन: एक साथ वृक्ष पर बिराजते
बगुलों की पंक्ति नभ तीर चलाते
कबूतर गुटर गूं का राग अलापते

पीपल के पत्ते यों तालियाँ बजाते
अशोक-निम-निलगिरी उल्हासते
श्वेत-लाल-पीले पुष्प मगन डोलते
प्रात: की बेला मधुरगीत गुनगुनाते

घास के शीश पर ओस बूंद हँसते
पंच्छी जोड़ियों में खेल नया खेलते
ओसमोती आपस में शरारतें करते
सिद्धी हेतु निकले पक्षी दाने चुगते

बबूल के फूल कैसे आकर्षित करते
कतार बद्ध तरु एक ताल में नाचते
सुरभी को फैलाकर शुद्धता को लाते
प्रभा मंदिर  यों कौन घंटियाँ बजाते ?



2.प्रभात की आयी है बहार


प्रभा के पंख पर पवन सवार
शीतल उत्साह का कर संचार
नई उमंग नई तरंग की बौछार
प्रात:पुष्प की हैं महक अपार

यह उत्सव कौनसा बार-बार ?
वृक्ष मुस्कुरा रहे जिस प्रकार
पक्षियों का मधुर गान साकार
जागो प्रकृति कर रही सत्कार

बटोर लो खुशियों का उपहार
आँखे खोलो देखो निज द्वार
नींद पर करो पुन: - पुन: प्रहार
निकल पड़ो हर्ष खड़ा बाहर

हाथों में लिए रथ कुसुम हार
पहन सका वही व्यक्ति स्वीकार
विजय होगी प्रति पल साभार
देखों प्रभात की आयी है बहार।


डॉ.सुनील जाधव, नांदेड
09405384672




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