राजकीय इंटर कालेज देवलथल में कक्षा दस में
अध्ययनरत नीलम बिष्ट ने यह कविताएं उन्होंने अपने स्कूल की दीवार पत्रिका के लिए लिखी
हैं।आशा है आपको कविताएं जरूर पसंद आयेंगी । आप सुधीजनों के विचारों की हमें प्रतीक्षा
रहेगी।
मेरे प्यारे पापा
सबसे प्यारे , सबसे न्यारे
सबसे अच्छे, सबसे सच्चे।
सारे दुनिया में प्यारे पापा
सारी दुनिया में अच्छे पापा।
मुझे अच्छे-अच्छे खेल खिलाते
ढेर सारे खिलौने मुझे दिलाते।
अच्छी-अच्छी बातें सिखाते
मीठे-मीठे सपने दिखाते।
कांटों से लड़ना सिखाते
फूलों सा खिलना सिखाते।
चिड़ियों सा उड़ना सिखाते
मुझे मेरी राह दिखाते।
नटखट गुड़िया मुझे पुकारते
पापा की लाडली मुझे बुलाते।
मुझे कठिन मेहनत करना सिखाते
सागर की लहरों से लड़ना सिखाते।
सबसे प्यारे एसबसे न्यारे
सबसे अच्छे, सबसे सच्चे।
मेरे हैं वो प्यारे पापा
सारी दुनिया से न्यारे पापा।
पिंजड़े में बंद परी
पिंजड़े में बंद परी ने कहा -
ओ ! दुनिया के जुल्मी लोगो
क्यों बंद रखा है मुझे
इस पिंजड़े में
लोगों की सेवा करूं
क्या इतना ही मेरा काम है
मैं एक परी हूं
मुझे एक नई दुनिया में जाना है
पापा की राजकुमारी बनना है
भाई से पहले राकेट चलाना है
स्वच्छ हवा में सैर को
मेरे पंख तरसते हैं
स्वच्छ जल में तैरने को
मेरी छड़ी व्याकुल है
क्यों झरने से बहते जीवन
को रोकते हो
रूके पानी से बदबू उठने लगी है
बहुत हुआ इसे बहने दो
अब वक्त है बसंत का
कली को बगिया में खिलने दो
अब वक्त है बरसात का
मोरनी की तरह नाचने दो
अब वक्त है बंद पंखों के खुलने का
इसे आसमान में उड़ जाने दो।
पिंजड़े में बंद परी ने कहा .
ओ !दुनिया के जुल्मी लोगो
क्यों बंद रखा है मुझे
इस पिंजड़े में।
कठपुतली
कठपुतली सा उसका जीवन
कितना निर्मम लगता है
क्यों रोज वही रोटी सेके
क्यों रोज चहर दीवारी में बंद रहे
क्यों सभी जिम्मेदारी उठाए
क्यों सभी की चिंता करे
क्यों सभी की जली-कटी सुने
क्यों उसे बोलने से रोके दुनिया
क्यों नहीं ले सकती वह
अपने जीवन के फैसले खुद
क्यों बेगारी करे इस दुनिया की
क्यों कमजोर समझते लोग उसे
इतना सब कुछ करने पर भी।
क्यों तब ही वह
आदर्श स्त्री कहलाती है
जब खुद को आघात पहुंचाती है
क्यों नहीं कह सकती वह अपनी बात
क्यों नहीं कर सकती है
वह थोड़ी सी मनमानी
क्यों वह थोड़ा सा दौड़ी तो
बुरी स्त्री कहलाती है
क्या उसे हक नहीं कि
वह भी जिए इस दुनिया में
क्यों नहीं आने देते
उसे इस संसार में
क्यों
देती है वह थमा
अपने जीवन के धागों को इस संसार को
जो उसे कठपुतली की तरह नचाते हैं
तब उसका जीवन
कठपुतली - सा बन के रह जाता है।
प्रस्तुति- महेश चंद्र पुनेठा
रा0इ0का0 देवलथल पिथौरागढ़
sochne ko majboor karti kavitaen...
जवाब देंहटाएंपिंजड़े में बंद परी ने कहा -
जवाब देंहटाएंओ ! दुनिया के जुल्मी लोगो
क्यों बंद रखा है मुझे
इस पिंजड़े में
लोगों की सेवा करूं
क्या इतना ही मेरा काम है
मैं एक परी हूं
बहुत कुछ.........