गुरुवार, 6 अगस्त 2015

जब एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ : मिथिलेश कुमार राय


          

         24 अक्टूबर,1982 0 को बिहार राज्य के सुपौल जिले के छातापुर प्रखण्ड के लालपुर गांव में जन्म। हिंदी साहित्य में स्नातक। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं व वेब पत्रिकाओं में कविताएं व कहानियाँ प्रकाशित। वागर्थ व साहित्य अमृत की ओर से क्रमशः पद्य व गद्य लेखन के लिए पुरस्कृत। कहानी स्वरटोन पर द इंडियन पोस्ट ग्रेजुएट नाम से वृत्त-चित्र का निर्माण। कुछेक साल पत्रकारिता करने के बाद फिलवक्त ग्रामीण क्षेत्र में अध्यापन।
         
             समकालीन कविता के परिदृश्य में सैकड़ों नाम आवाजाही कर रहे हैं। वरिष्ठ पीढ़ी के बाद युवा पीढ़ी भी काफी हद तक साहित्यिक यात्रा के कई पड़ाव पार कर चुकी है। इनके एक दम पीछे युवतर एवं नवोदित कवि पीढ़ी समकालीन कविता की मशाल उठाए युवा पीढ़ी के दहलीज पर खड़ी है। ऐसे ही एक युवा कवि मिथिलेश कुमार राय हैं।

          ठेठ माटी की गंध लिए सादगी और संवेदनाओं से भरी कविताएं मिथिलेश कुमार राय को हिन्दी साहित्य में एक अलग पहचान दिलाती हैं। इनकी कविताओं की ठेठ देशी गमक ही है कि पाठक मन भौंरे की तरह रस पान करने के लिए अपने आप खींचा चला आता है। बिंबों में गुंथी हुई कविताओं की शब्द पंखुड़ियां जब एक-एक कर खुलती हैं तो भाषा की सादगी नये शिल्प में चमक उठती है। उनकी कविताएं जन सामान्य से सहज संवाद करती हुई आगे बढ़ती हैं जहां कोई छल नहीं , कोई जादू नहीं बस शुद्ध देशीपन के साथ अपनी जगह बना लेती हैं। संभावनाओं से भरे इस कवि की एक कविता जब एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ  को पोस्ट करते हुए तृप्ति का अनुभव कर रहा हूं। आप सुधीजनों के अमूल्य विचारों की प्रतीक्षा में।


     
जब एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ

मेरी उम्र अट्ठाईस साल है
और मैं कविताएं लिखता हूँ

अभी-अभी मैंने एक लंबे बालों वाली लड़की से कहा
कि मैं तुम्हें महसूसता रहता हूँ हमेशा
जवाब में उसने
अपनी आँखें नीची कर लीं
 और पैर के अंगूठे से पृथ्वी को
कुरेदते हुए कहा 

कि मैं भी तुम्हें महसूस करती रहती हूँ हमेशा


इसी बात पर मैं एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ
जिसे पढ़ते हुए लोगों का दिमाग सो जाए
और दिल को ही सारी प्राण-उर्जा मिलने लगे
लेकिन लड़की
जिसका भाई एक ऊँचे ओहदे पर है
और पिता शहर में रसूख रखता है
मुसकुराते-मुसकुराते डर जाती है
रह-रहकर उसकी आँखें
समय के पार देखने लगती हैं
जहाँ से आती हुई मायूसी
 उसके चेहरे को घेरकर 

विकृत कर देती है


तीन साल धूल फांकने के बाद
अभी-अभी मैंने दो टके की नौकरी पकड़ी है
खेतों के मेड़ पर गाते मेरे पिता
पीली पड़ चुकी फसल पर नजर पड़ते ही
गुनगुनाना भूल जाते हैं
और चेहरे को आसमान की ओर उठाकर
पता नहीं क्या देखने लगते हैं

बावजूद इसके
मैं एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ
 जिसमें लंबे बालोंवाली लड़की की खिलखिलाहट की तरह
जीवन हो

लेकिन इस शहर की एक स्त्री
कल अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ
रेल की पटरी पर सो गईं

इस दिल दहला देनेवाली घटना की पड़ताल
अखबारवाले और जिनके दल की सरकार नहीं है अभी
उसने की तो पता चला 

कि स्त्री का पति
दौड़ने के काबिल नहीं था
वह घिसटकर चलता था
और उसके घर में चिड़िया को चुगाने के लिए
एक भी दाना नहीं था
दाने के बदले स्त्री को किसने क्या कहा
कि उसे गहरी नींद में जाने के अलावे 

कुछ सूझा ही नहीं


बावजूद इसके
मेरे मन में 

वह जो एक प्रेम कविता कुलबुला रही है
जो एक खिलते हुए फूल को देखकर आई थी
मैं उसे लिख लेना चाहता हूँ
लेकिन मुझे पता चलता है कि
इलाके के एक गाँव के खेत में
एक चौदह साल की बच्ची की
लाश मिली है
और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में चिकित्सक ने लिखा है 

कि मरने से पहले बच्ची के मुँह से
 हजार बार चीत्कार निकली थी


लंबे बालोंवाली लड़की कहती है 

कि वह प्रेम कविता
जिसे लिखने के लिए मैं
अधीर हूँ

मुझे बहुत इंतजार करना पड़ेगा
वह अपनी उदास आँखों से
यह भी कहती है कि
ऐसा भी हो सकता है 

कि तुम मर जाओ
और तब भी तुम्हारा इंतजार खत्म न हो


 रौशनी में सजा मुकर्रर होती थी

होने को तो बहुत कुछ था आसमान की तरह
जिसके होने या नहीं होने का 

कुछ भी मतलब नहीं निकलता था
लेकिन उजाला एक खतरनाक चेहरा लेकर आता था

उन दिनों मैं रौशनी से बचने के लिए
हाँ-वहाँ भागा फिरता था
रात आती थी तो थोड़ी राहत मिलती थी
और मैं चाहने लगा था 

कि रात को चाँद भी न निकले
और तारे भी अंधेरे में गुम हो जाए कहीं
अंधेरा ही एकमात्र सहारा था हमारा


असल में अपने अंदर 

एक फूल के खिलने से मैं प्रफुल्लित था
लेकिन उसके सुगंध को छुपाने के लिए 

मुझे मारा-मारा फिरना पड़ रहा था

खूंखार भेड़िये से पटे जंगल में
अघोषित रूप से 

फूल के नहीं खिलने का नियम था
यह सब को पता था
और सब भरसक जतन भी किया करते थे
लेकिन कोई जतन में असफल हो जाता था 

तो उसके लिए एक ही सजा मुकर्रर होती थी

ऐसे में मैं मारा-मारा फिरता था
और रात के आगोश में ही तनिक सकून पाता था

दिन का हिस्सा दरिंदों के पास था
और हम जो रात को मंत्र जपते थे
दुनिया के अमन-चैन के लिए
दिन उसकी सजा का समय होता था


यह शब्द नहीं लिखा जाता तो अच्छा होता

हमारे नथुने से भी टकराई थी
वह पवित्र गंध
हमने भी चाहा था
कि यह दुनिया 

एक उद्यान हो जाए


उम्र ही ऐसी थी कि हमारा ध्यान
लौट-लौटकर फूलों पर आ जाता था
और उसकी सुगंध से 

हम हमेशा सराबोर रहते थे

हम चाहते थे 

कि समूची पृथ्वी
 गुलाबी रंग में रंग जाए
और खिले हुए गुलाब की तरह
 सबका चेहरा दमकने लगे

 इसके लिए हमने
अपने हाथों को ऊपर उठाकर दुआ मांगी
और भरसक प्रयत्न किया 

कि आजू-बाजू के लोग भी 

हमसे सहमत होकर
फूलों की सुगंध को
दसों दिशाओं में फैलाने के लिए
हवा से मनुहार करें

लेकिन यह शब्द नहीं लिखा जाता तो अच्छा होता
कि हमारी प्रार्थनाएं बेअसर रहीं
हमारी उम्र फिसल गई
और अब हम 

अपने हाथों को ऊपर उठाकर 

सिर्फ हहाकार कर सकते हैं


 जैसे एक राजा होता था

एक लड़की उस तरह नहीं थी
जैसे एक राजा होता था
किसी किस्से में

वो अब भी कहीं न कहीं थी
मुसकुराती हुई
मेरी बंद आँखों के पार
या सांसों में

असल में गलती मेरी ही थी

मुझे एक साँप में तब्दील हो जाना चाहिए था
और अपनी चमकती हुई नई त्वचा के साथ
केंचुआ छोड़कर आगे बढ़ जाना चाहिए था

या समय रहते मुझे
एक वृक्ष में बदल जाना चाहिए था
अपने सारे पत्ते को विदाकर
मुझे फिर से हरा हो जाना चाहिए था
लेकिन मैं प्यार करने के हुनर सीखने में
अपना सारा हुनर गंवा बैठा था

संपर्क
मिथिलेश कुमार राय
ग्राम व पोस्ट- लालपुर  
वाया- सुरपत गंज
 जिला- सुपौल (बिहार) पिन-852 137    
फोन-9473050546, 9546906392
mithileshray82@gmail.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. भीतर तक मथ देने वाली कविता..... बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी कविता है !!बधाई!

    अनु प्रिया

    जवाब देंहटाएं
  3. Badiya kavita

    शाहनाज़ इमरानी

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी कविता।
    हमारे समय के गहरे घावों को दर्ज करने के लिए कविता के भीतर इसी धैर्य की आवश्यकता है।Sushil Suman

    जवाब देंहटाएं