मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

कहानी - बद्दू : विक्रम सिंह





 हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कहानीकार विक्रम सिंह की कई कहानियों को इस ब्लाग में पढ़ चुके हैं। इनकी चर्चित लम्बी कहानी बद्दू की आज चौथी किस्त। यह कहानी मंतव्य में प्रकाशित हो चुकी है।

शहर से गाँव की तरफ पलायन करना

       एक बार फिर पलटन को भगवान का गणित नहीं समझ आया था। ठीक जब पलटन का बेटा विदेश की तरफ निकला था। उस के उपरान्त ही तारकेश्वर  के बेटे ने गाँव की जमीन में कदम रख दिया था। वह समझ नहीं पाया था कि इस बार गलती कौन कर रहा है। दरअसल खेत खरीदने के बाद तारकेश्वर  ने सोच लिया कि अब बहुत खेत लिखवा लिया हूँ। बेटे को गाँव में भेजने की योजना को पूरा करने में लग गये। सूट बूट में बाइक में घूमने वाला शहरी बेटा जब अपने मित्रो ;जिसमें से कुछ मित्र सरदार भी थे। दुखी हो गाँव जाने की बात बताता तो वह हंस पड़ते खास कर सरदार मित्र हंसते हुए कहते,’’उए कनाडा जा आस्ट्रेलिया जा, आ कि पेंड चल चलया।’’
’’अरे यार तुम लोग बुलाओगे तो चला आऊँगा।’’
’’अरे यार यह भी कोई बात हुई पला, तेरे ली कुछ करेंगे।’’

       यह वह सरदार मित्र थे जिनके मामा,चाचा कनाडा-इटली में कई सालों से रह रहे थे। कइयों को तो वहाँ की नागरिकता भी मिल गई थी।
सही मायने में मृत्युजय जब भी अपने मित्रो के साथ घूम फिर कर कई बार देर रात घर आता तारकेश्वर  गुस्से में कहते,’’उन सब के तो दादा परददा विदेश में कमा रहे हैं। यह सब भी वही चले जायेगे। तुम क्या करोगे। कुछ नहीं तो गाँव में खेती देख। आवारा घूमने से तो अच्छा है।’’

     मृत्युंजय भी अपने पिता की इस तरह की बात सुन सुन कर आजीज आ गया था। वह भी सोचता कम से कम गाँव जाने से इनसे तो पीछा छूटेगा।
मित्र गण उसे कहते,’’चल कोई नहीं गाँव ही चला जा वहाँ तुझे शहर की गोरी नहीं तो कम से कम गाँव की छोरी तो मिलेगी। उसी से मन बहला लेना।’’
बात भी वही हुई। गाँव में  मृत्युंजय और उसकी माँ ने रहना शुरू कर दिया।

     गाँव में  मृत्युंजय का बहुत मन लगा। खेतों में काम करती मजदूर लड़कियाँ उसे अच्छी लगीं। वह जब भी खेत में काम कर रही होती वह उनके दो गोलों के बीच के लकीर को देखता रहता। नजर इस तरह से अंदर तक गड़ा देता कि पूरे उभार का साइज पता चल जाये। यह सब देख वह मदहोश हो जाता।  वह मजदूर लड़कियों पर बेशर्मी से डोरे डालता रहता था। इस वजह से उसका खेत में खूब मन लगा रहता था। मगर माँ का एक पल भी मन नहीं लग रहा था। क्योंकि कई सवाल थे जिसका एक भी जबाब नहीं था। जो जबाब थे उसको कहना नहीं चाहती थी। आखिर क्या कहती बेटा को नौकरी नहीं मिली या फिर बेटा नालायक था। इधर माँ को लोगों के हर वाक्य के  भीतर जैसे छोटे-छोटे,कहे-अनकहे ताने छिपे लगते थे। सिर्फ गाँव तक सीमित ना रहीं बात अगर गाँव वालो को लगता कि यह शहर छोड़ गाँव खेती करने क्यों आ गया। वही बात शहर में भी होती थी। शहर में कुछ ना कर गाँव क्यों चला गया। उस वक्त तारकेश्वर को अपने गणित पर अफसोस होता था। वह बस इस ताक में रहते कि कही से भी कोई मंत्री संत्री का सोर्स मिल जाये तो पैसे देकर बेटे को नौकरी करवा दूंगा। माँ भी बेटे को कई बार टोकती बेटा काहे ना तू अपन सरदार दोस्त संग बात कर अमेरीका, कनाडा चल जात हवा।
’’माई जब वक्त आई तो हमउ चल जाइब।’’

मिल्क मैंन बनने की तैयारी
        जहाँ मृत्युजय के गाँव आते ही मजे लग गये थे। वही धनंजय की सऊदी अरब में पहुँचते ही मन उदास हो गया। वह रात के करीब 12 बजे एअरपोर्ट पहुंच गया था। उस वक्त उसे भूख लग रही थी। मगर अफसोस की उसके पास रियाल की जगह रूपया था जिसकी कोई वैल्यू नहीं थी। उसी वक्त एक मुस्लिम लड़का जो उसके साथ प्लेन में आया था। जो केरला से आया था। उसे बता दिया कि पैसे एक्चैंज करने के बाद ही चलंेगे। उसने उसे चाय और बिस्कुट खरीद कर दे दिया था। उसने उसे समझा दिया कि तुम फोन कर टेक्सी लेकर चले जाओ। मगर फोन करने पर यह बताया कि आप अभी ना आये हम सुबह में लेने आयेंगे। उस रात उसने वहीं काट ली।

          उस दिन जब वह अपने अड्डे पर पहुंचा तो उसे पूरी दुनिया बेरोजगार दिखी थी। उसे कई देश के लोग मिले थे। पाकिस्तान, यमन, बंगलादेश, श्रीलंका ,सिरिया, सुडान, नेपाल, फिलिपीन, इंडोनेशिया,सुमाली। उसे उस दिन यह बात समझ नहीं आई थी कि सभी देश एक दूसरे की थोड़ी सी जमीन हथियाने के लिये बॉर्डर पर गोला बारूद करते रहते हैं। क्यों नहीं बेरोजगारी जैसे विषय पर एकजुट होकर इसका समाधान निकालते हैं। सचमुच यह एक छोटी सी दुनिया ही थी। हर एक देश के अपने बेरक थे। पाकिस्तानी,भारतीय,सिरियाई इत्यादि सभी लोग बाग अपने अपने बेरक में रहते थे। मगर बेरक में भी अलग अलग धर्म के लोग अपने अपने  बेरक में रह रहे थे। धनन्जय भी अपने यूपी,बिहार के हिन्दू भाइयों के साथ रहने लगा। मगर हर एक का बेरक एक जैसा था और सबकी समस्या भी एक जैसी थी। सबकी मजबूरियां एक जैसी थी। और सब एक साथ उसका समाधान ढूंढ रहे थे। पहले रह रहे कुछ लड़कों ने धनंजय से बस यही कहा,’’क्यों आ गये यहाँ।’’

          पहले पहल धनंजय को इस सवाल से कोफ्त हुई। आखिर इन्सान इतनी दूर क्यों आता है? यह तो हर एक कोई जानता है। कुछ बातों के सवाल नहीं बनते। ऐसे सवाल करने वाला मूर्ख होता है। मगर वह इस सवाल के पीछे के रहस्य को समझ नहीं पाया था कि मूर्खो के बीच एक मूर्ख और आ गया है। धनंजय ने इतना ही जबाब दिया,नौकरी करने के लिए। लोगों  ने उस दिन उसे मजाक मजाक में बद्दू कह दिया था। वह उस दिन बद्दू का मतलब बस यही समझ पाया था कि शायद यहाँ के लोगबाग प्यार से लोगों को बद्दू कहते हैं। बद्दू बनने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। पहले दिन उसे मुधिर सुपरवाइजर ने उससे पहले उसका पासपोर्ट ले लिया था। और उसे सिर्फ खुराकी के लिए दो सौ रियाल दे दिये थे। अब तक सभी कार्य करने वालों को बस तन्ख्वाह के नाम पर खुराकी के लिए चंद रियाल ही मिल रहे थे। खैर दौ सो रियाल मिलने पर वह जितना खुश हुआ था। उसे कहीं ज्यादा वह पहले दिन नौकरी कर दुखी भी हुआ था। उसे चिलचिलाती धूप में मशीन में तेल पानी के लिए खड़ा कर दिया गया था। जहाँ उसकी देह तपने लगी थी। ऊपर से मशीन की गर्मी उसे अलग ही सिजा रही थी। इतने भर से वह बचने के लिए वह पागल हो रहा था कि दूसरी तरफ कान फाड़ू मशीन की आवाज अलग से आ रही थी। एक तरफ जिस्म पक रहा था तो दूसरी तरफ कान फट रहे थे। जीभ सुख कर जुबान बंद सी हो जा रही थी। ऊपर से धूल की बारिश अलग से भींगो रही थी। उस दिन धनंजय यह सोच रहा था कि वह खेतों में सूरज उगने के पहले तथा सूरज डूबने के पहले दो घंटे काम कर वापस आ जाता था। सुबह जब सूरज उगने के बाद धीरे धीरे उग्र रूप ले लेता पूरा गाँव  वापस आ जाता और फिर जब सूरज सारा दिन खुद तपता हुआ ठंडा होने लगता तो सभी खेतो में दोबारा काम करने चले जाते थे। मगर यहाँ तो सूरज निकलने के पहले और डूबने तक तपना था। ऐसा लग रहा था सूरज यहाँ और उग्र गुस्से में प्रकट हो रहा था। तिस पर यहाँ पानी भी खरीद कर लेना पड़ रहा था। वह भी इतना महंगा था। लोग यहाँ  पानी के महंगे होने से रोते थे। यहाँ पेट्रोल सस्ता था। एक रियाल में एक लीटर पानी और चार लीटर पेट्रोल मिल जाता था।  ठीक भारत देश के उल्टा पानी सस्ता और पेट्रोल महंगा था। लोग बाग तेल महंगा होने से रोते रहते थे। पूरे भारत में तेल के दाम बढ़ने से  सभी चीजों के दाम बढ़ जाता था। मगर अफसोस  जिस भारत देश में गंगा से लेकर तमाम नदियाँ बह रही हो, हिन्दुस्तान में लोग जहाँ प्याऊ चलवाते थे.......कुंए,तालाब खुदवाते थे...। यहाँ प्रकृति व्दारा प्रदत्त जीवन के लिए अत्यावश्यक जल का बाजारीकरण कर विदेशी कम्पनियाँ लूट रही हैं। 
  
         जिस पैसो के हाथ में आने पर पल भर की खुशी हुई। उसी शाम रूम पार्टनरो को उसी हाथ से खुशी खुशी पैसे खुराकी के लिए दे दिये थे। क्योंकि उसी रात रूम पार्टनरो ने उसे खुराकी के लिए पैसे मांग लिए थे। और साथ ही किलो भर प्याज और चाकू दे, प्याज काटने के लिए कह दिया था। दिन भर धूप ने रूलाया और अब प्याज उसे अलग रूला रहा था। पूरे रूम में खाना बनाने की तैयारी के लिए कोई आटा गूंद रहा था कोई चावल बना रहा था कोई सब्जी काट रहा था। वह सोच में पड़ गया था क्या यही दिनचर्या  सऊदी अरब में बन कर रह जायेगी। इसी को नौकरी कहते हैं। क्या ऐसी ही नौकरी करने के लिये लोग बाग जीवन भर सघर्ष करते हैं। हम गरीब किसान के छह इंच का पेट भरने के लिए तो खेती ही ठीक है। जब बाबू जी ने भी नौकरी को इसी तरह झेला था तो गाँव आ गये। फिर अगर बाबू जी को खेती से इतना बैर था तो वह नौकरी क्यों नहीं कर पाये। आज उसे ऐसा लग रहा था अगर इतनी मेहनत खेतों में करते तो खेत भी सोना उगल देता। उसकी आँखे आंसू से भर गयी थी। पता नहीं चल पा रहा था कि प्याज ने रूलाया था या नौकरी ने। प्याज की प्लेट साइड कर वह बाहर आ एक बडे़ से टायर ;सम्भवत जो पे लोडर का टायर था। उस पर जा कर लेट गया। और आसमान के तारों को देखने लगा। कई तारों पर नजर जाती और हट जाती। हर एक तारा टिमटिमा रहा था। जैसे उसे कह रहे थे बेटा माँ रात जाग हम तारो को देख पूछ रही है। कि मेरा बेटा विदेश में खाना खाया या नहीं। उसे नीद तो आ जाएगी ना।

           करीब इसी तरह महीना भर बीता था। महीने भर बाद उसने एक सस्ता सा मोबाईल भी ले लिया था। वह भी खुराकी के पैसे को बचा बचा कर। अब तो हालात यह थे कि खुराकी के पैसे से घर पर फोन पर बात चीत में ही उड़ने लगे। कुछ कुछ हालत तो ऐसे थे उतने ही पैसे बाबू जी के भी बर्बाद हो रहे थे। हर बार माँ बस उसे यही पूछती,’’बेटा खाना खा लेले हवा’’। उसका जबाब हाँ में होता था। माँ यह सुन खुश हो जाती। फिर एक बार कहती, बेटा कब वापस आइबा। जैसे माँ कह रही हो बेटा कब इस गुलामी से आजाद हो वापस आओगे। जब धनंजय गाँव के लोगो के हालचाल लेता तो माँ इतना कहती, ’’बेटा, सब बस एक ही बात पूछेला । बेटा कितना डालर कमातवा ।’’दरअसल गाँव के लोग विदेश के पैसे का मतलब बस डॉलर ही समझते थे। वह यह नहीं सोच पाते थे कि हर देश की अपनी अलग करनसी होती है। यहाँ तक की कई अगुवा भी लड़की का रिश्ता लेकर आते और लड़की वालों से यही कहते लड़का डालर में पैसा कमा रहा है। कई बार तो गाँव के कई लड़के आपस में एक दूसरे को बाहर देश जाने की सलाह देते और उदाहरण कि तौर में धनंजय का भी नाम ले लेने लगे थे। देखा फलनवा भी चल गेल बाहर। सही मायने में हर एक कि जिंदगी मुंगेरीलाल के हसीन सपने जैसे थी। या यूँ समझीये सबको दूर के ढोल सुहावने लग रहे थे। सबको बस पैसे कमाने की ही धुन थी जल्द से जल्द अमिर बनने की क्योंकि बाप बड़ा ना भइया सबसे बड़ा रूपया। दो चार महीने बीतने के बाद भी तनख्वाह के नाम पर उसे बस खुराकी ही मिली थी। 1200 रियाल की नौकरी की तनख्वाह में उसे बस हर महीने चार पाँच सौ रियाल से ज्यादा नहीं मिले थे। उतने वक्त तक राशन दुकान से लेकर खुद के निजी खर्च ही इतने हो जाते थे कि कुछ भी नहीं बचता था। अब धनंजय भी उन लोगों की श्रेणी में आ गया जो पहले से अपनी मोटी तनख्वाह लेने के लिए बैठे थे। इसी चक्कर में उन्हें काम करते कई साल हो गये थे। हर महीने पलटन पैसे आने का इंतजार करते रहते पर हर महीने एकाउंट खाली ही जाता था। उसके मन में कई सवाल उठते थे बेटा शायद कमाई का पैसा देना नहीं चाहता। या वह कभी खूब मोटी रकम एक बार में ही एकाउन्ट में डालेगा। ऐसे वक्त प्रधानमंत्री ने पूरे भारत में हर लोगों के एकाउन्ट खुलवा दिये थे। सभी काले धन का आने का इंतजार कर रहे थे। जलन,दर्द, और अवसाद से भरी हुई दिनचर्या से पैसों वाली डायबटीज हो गई थी ऊपर से चिंता के घाव  शरीर के कई हिस्से में हो गया था। जो पैसे वाले इन्शुलिन ना मिलने के कारण सूख नहीं रहा था। धनन्जय अपने पिता को सच नहीं बताना चाहता था क्योंकि सच इतना कडवा था कि शरीर में आये पैसे की डायबटीस को इकदम से जीरो कर देगा। पिता मौत के मुँह में चले जायेंगे। कही इस कड़वाहट से बच भी गये तो सरकारी एम.बी.सी के चक्कर काटते काटते किडनी ,हार्ट भी खत्म हो जायेगा। अब तो हालात ऐसे थे कि जब भी मुधिर आता सभी मुल्कों के काम करने वाले लड़के एक साथ मिल काम छोड़ बैठ जाते और अपने पैसे की मागं करते। यह वही देश थे जो एक दूसरे से बार्डर में गोला बारूद दाग रहते थे। आज सभी मिलकर एक ही लड़ाई लड़ रहे थे,रूपया। मुधिर उन्हें धमकी देता अगर आप सब ऐसा करेंगे मैं आप सब को आप के मुल्क वापस भेज दूंगा। कई तो कहत,’’हाँ भेज दो’’ । मगर कई वापस काम पर चले जाते थे। वह यही सोचते कि कहीं ऐसा करने से उनके पैसे ना फस जाये। उस वक्त धनंजय का मन करता की इसके बकरे की तरह निकली दाड़ी को नोच डाले। धनंजय को लगा वह बेगुनाह होकर भी वह किसी जेल में आकर सजा काट रहा है। उसे ऐसा लगा कि उसे इस जेल से निकल कर वापस जाना है। वह सोच रहा था क्या है अगर वह गाँव में जाकर दूध बेचेगा। वह इस व्यवसाय को और बढाऐगा। आखिर अमूल जैसी कई कम्पनीयां दूध का व्यवसाय कर मिल्क मैंन बन सकती हैं। तो मैं कई भैेसे पाल कर दूध डेरी में सप्लाई करूं तो क्या बुरा है? आखिर दोनों तो दूध ही बेचेंगे। जरूरी नहीं कि नौकरी ही हर कोई करे। बाकी काम भी तो इंसान ही करते हैं। उसने एक संकल्प कर लिया था। कुछ तो ऐसे थे अपने मुल्क बिना पैसे के किसी भी कीमत पर वापस नहीं जाना चाहते थे क्योंकि इससे समाज में भारी बेइज्जती हो जायेगी। उसके भीतर भारत वापस जा व्यवसाय ;मिल्क मैंन बनने का सपना इस तरह लबालब भर गया कि वह फट पड़ने को आमादा हो गया।

           अगले दिन का सूरज उगा था और एक नई उम्मीद के साथ नई विकास की सोच के साथ, वह उस दिन काम पर नहीं गया ठीक कुछ लड़के भी नहीं गये। दुनिया में हर चीज गांधी वाद से नहीं मिलती,हक के लिए लड़ाई करनी पडती है। मुधिर की किसी भी धमकी का कोई असर नहीं हुआ । काम रूकता देख तत्काल ही बकाया सेलरी से कुछ सेलरी हाथों में थमा दी गई। क्योंकि इतने लडकों का दुबारा बीजा दे तो इसे ज्यादा खर्च हो जायेगा। मगर काम फिर भी बंद रहा वह सब अपनी आजादी चाहते थे। पिंजरे में बंद जानवर को कितना भी बढ़िया खाना हो पर दम फिर भी घुटता है। वह सब यह भी जानते थे कि उनके जाने के बाद इसी जगह फिर कोई आयेगा और बद्दू बनकर रह जायेगा। जब देश के नौजवानो को नौकरी की डोर दलालों के हाथ हो तो फिर देश कहाँ विकास कर सकता है। एक तरफ भारत को सबसे विकसित और शक्तिशाली देश बनाने की बात हो रही थी। भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम 2020 तक मानते थे कि भारत सबसे शक्तिशाली देश होगा। पर जब पूँजीवादी और नौकरशाह जैसी बातें आज भी विद्यमान हो और जब देश के नौजवानो की नौकरी की डोर दलालो के हाथो हो तो फिर देश कहा विकास कर सकता हैं। उल्टा एक दिन सब कुछ बिक जायेगा। मगर मुधिर ने पासपोर्ट देने से इन्कार कर दिया। उसने साफ कहा,’’ पैसे दे दिये हैं। अब चुप चाप काम पर निकल जाओ।’’

      उस दिन कुछ मित्रो ने सलाह बनाई कि लेबर कोर्ट चलना चाहिये। अगर दुनिया की सारी समस्या कोर्ट कचहरी जाने से खत्म हो जाती तो शायद ही इस दुनिया में कोई समस्या होती। समस्या तो और बढ़ जाएगी कितने सालों में इन्साफ मिलेगा कोई ठीक नहीं। बेहतर है कि हम काम करें और बीच-बीच में इसी तरह पैसे लेते रहें। वक्त देखकर वापस निकल जायेंगे।

        सब दोबारा काम पर लग गये। धनंजय को जो थोड़े बहुत पैसे मिले उसे उसने अपने पिता जी को भेज दिये थे। उस दिन पलटन खुश हो मोर की तरह नाचने लगा था मानों पैसों के बादल में मदहोश हो गया हो। पूरा गाँव उसे फटी नजरों से देख रहा था। शायद धनंजय को भी पिता का मोर की तरह नाचना अच्छा लगा हो। वह साल भर कुछ ना कुछ पैसे पिता जी को भेजता रहा। पलटन ने पुरानी खाल उतार फेंकी अपने को कोसने की वजाय मस्त रहने लगा। पलटन ने साइकल की जगह हीरो की एक स्कूटी खरीद ली। अब पलटन का नाम उन लोगों में आने लगा जिनके लड़के बाहर देश कमाने गये थे। गाँव भर के लोग कहते,’’ लडका विदेश में कमातबा,कौन कमी बा।’’गाँव के अधिकतर लोग अपने बेटे को बाहर जाने की सलाह देने लगे। घर में पिता को इतना सुखी देख घंनजय ने अपने को दुखी रखना ही मुनासिब समझा। अरबी मदारियों का वह बंदर बन गया। बंदर नाचता रहा पैसो के लिये। जब भी दो चार महीने की सैलरी हो जाती वह सभी मिलकर दाँत खिख्याने लगते अरबी मदारी कुछ पैसों के टुकड़े उनके पास फेंक देते। वह सब खुश हो जाया करते। क्योंकि अब वह इंसान कम और पिंजरे के जानवर ज्यादा हो गये थे।

क्रमश: ...............
सम्प्रति- मुंजाल शोवा लि.कम्पनी में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत
सम्पर्क- बी ब्लाँक-11,टिहरी विस्थापित कालोनी,ज्वालापुर,

न्यू शिवालिकनगर,हरिव्दार,उत्तराखण्ड,249407
मोबा0- 9012275039 
 


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