बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

माधव महेश की कविताएं -



       

      समकालीन कविता के परिदृश्य में सैकड़ों नाम आवाजाही कर रहे हैं। वरिष्ठ पीढ़ी के बाद युवा पीढ़ी भी काफी हद तक साहित्यिक यात्रा के कई पड़ाव पार कर चुकी है। इनके एक दम पीछे युवतर एवं नवोदित कवि पीढ़ी समकालीन कविता की मशाल उठाए युवा पीढ़ी के दहलीज पर खड़ी है। यथार्थ के धरातल से लेकर मायावी दुनिया के अंतर्जाल में कई दर्जन  युवतर एवं नवोदित कवि समकालीन कविता का झण्डा उठाए आगे बढ़ रहे हैं।       
       फिर भी सन 20000 के बाद एक नवीन किन्तु जुझारू जज्बातों से लबरेज किन्तु-परन्तु से बाहर  युवतर एवं नवोदित कवियों ने हिन्दी साहित्य के आकाश में नयी इबारत लिखी है। वो अलग बात है कि कुछ कम लिखकर ज्यादा चर्चित तो कुछ ज्यादा लिखकर भी कम अथवा अचर्चित ही बने रहे। हिन्दी कविता के मंच पर कौन आएगा और कौन नहीं आएगा इसका निर्णय साहित्य के रेवटी में बैठे तथाकथित कुछ आलोचक गण ही करते रहे हैं।

      माधव महेश की कविताएं जिन मुद्दों को उठाती हैं उनसे आम जनता रोज रूबरू होती है लेकिन उसका हल कौन निकालेगा कैसे निकलेगा यह एक बड़ा प्रश्न है। जनता तो जनता है। आज पढ़ते हैं युवा कवि माधव महेश की कविताएं -


1-
एक दिन
कोई कट्टरपंथी गिरोह
कत्ल कर 
फेंक देगा मेरी लाश 
सड़क किनारे 

तब कुछ 
कट्टरता के विरोधी 
खड़े होंगे 
मेरे कत्ल के खिलाफ
निकाल रहे होंगे जुलूस
उठा रहे होंगे सवाल मेरे कत्ल पर

हाँ ठीक तभी 
मेरे कुछ मित्र
उड़ा रहे होंगे मेरा मजाक
बता रहे होंगे मुझे देशद्रोही
लगा रहे होंगे ठहाके 
नास्तिक कहकर
2-
कब्र अपनी हम ही खोदेंगे
मनुष्य होने के नाते
ये हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है

इसी में दफन कर देंगे
अपने पितरों को 
अपने नाती पोतों को

चूँकि हम इंसान हैं
हम ही मुखाग्नि देंगे 
अपनी चिता को
जिसमें समाहित होंगे
हमारे अतीत की स्मृतियाँ
और भविष्य की झलकियाँ

हम गंगा में विसर्जित कर देंगे
अपनी ही लाश 
जिसके साथ बह जाएगी
पूरी पृथ्वी
इसी में समा जाएंगे
चाँद , तारे और आकाश ।

3-
समय के साथ 
तुम्हारे चेहरे पर
उतर आयी हैं जीवन की पगडण्डियाँ 

तुम्हारे थीसिस के पन्नों का भार
दीखता है तुम्हारे चश्मे में
और उसके पीछे 
तुम्हारी आँखों से झांकता नीला आसमान
ऊँचा है या गहरा 
थहाते हुए बैठा हूँ 
मैं चुपचाप !

तुम्हारे चेहरे से झाँकता हुआ 
मासूम बच्चा 
सयाना दीखता है अब
हर बात पर खिलखिलाता नहीं
मुस्कुराता भर है 
  
कितना कुछ बदल गया 
कुछ ही दिनों में
हाँ पर तुम्हारे चेहरे में 
नमक पहले जैसा ही है
और नहीं बदला है
तुम्हारे गले में पड़ा लाल धागा
जिसने मेरे मन को बाँधे रखा है।
संपर्क सूत्र-

मोबा0-7398984765

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