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शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

यदि तुम नंगे हो : प्रेम नंदन



     

                                                                                             प्रेम नंदन
      हमारे समय के संभावनाशील कवि प्रेम नंदन ने इधर बहुत ही बेहतरीन व सधी हुई कविताएं लिखी हैं । आज कल अपने कविता संग्रह की तैयारी में लगे हैं । कविताओं को चुनने में व्यस्त। उनमें से दो कविताएं पुरवाई में पढ़ें आप भी।

1-संभावनाएं

यदि तुम नंगे हो
तो तुम्हें इसका उचक उचक कर
प्रदर्शन करना भी आना चाहिए
और यदि तुम ऐसा नहीं कर पाते
तो अपने सारे नंगेपन के बावजूद
तुम में नंगे होने की
अभी भी
बहुत सारी संभावनाएं हैं।

2-तुम्हारा रंग

हर पल ,
हर दिन ,
हर मौसम में
बदलते रहते हो रंग ,
मेरे दोस्त !
पता है तुम्हे ...
आजकल,
क्या है तुम्हारा रंग ?

संपर्क-
उत्तरी शकुननगर,

सिविल लाइन्स ,फतेहपुर,0प्र0

मो0 & 9336453835

bZesy&premnandan@yahoo.in

सोमवार, 19 जनवरी 2015

आधी आबादी का सच : प्रेम नंदन





        
                                                       प्रेम नंदन

          25 दिसम्बर 1980 को उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के फरीदपुर नामक गांव में जन्में प्रेमचंद्र नंदन ने लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से की । लगभग दो वर्षों तक पत्रकारिता करने और कुछ वर्षों तक इधर-उधर भटकने के उपरांत अध्यापन के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ एवं समसामयिक लेखों आदि का लेखन एवं विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। एक कविता संकलन - सपने जिंदा हैं अभी , 2005 में प्रकाशित ।

      मेरे कवि मित्रों में से एक प्रेमचंद्र नंदन ने ये कविताएं अरसा पहले भेंज दिया था। फिलहाल प्रस्तुत है यहां उनकी ये कविताएं-

आधी आबादी का सच

























मंजिलें तो सदियों से
उनके आधीन हैं
बहुत पहले से
रास्तों पर उनका ही कब्जा है
इधर कई वर्षों से
उनकी गिद्ध नजरें
हमारे सपनों पर टिकी हैं।

वे चाहते हैं
कि हमारे कदम
उनकी बनाई परिधि से
बाहर न निकलें
और यदि निकलें
तो फिर उनके निशान तक ढूढ़े न मिले।
उन्हें पता नहीं क्यों
हमारी ऑंखों की चमक में
कड़कती हुई बिजली
या तलवार की धार दिखाई देती है
इसलिए वे हमको
डुबोये रखना चाहते हैं ऑसुओं में ।

हमारी खिलखिलाहटों में
न जाने क्यों
सुनाई पड़ता है उन्हें
अपनी पराजय का शंखनाद
इसलिए वे
सिल देना चाहते हैं
हमारे होंठ।
हम अपनी जरूरत जाहिर करते हैं
तो उन्हें लगता है
कि हम उनके साम्राज्य की
कुंजी मॉंग रहें हैं उनसे
इसीलिए वे कदम दर कदम देते रहते हैं चेतावनी
हमें अपनी सीमा में रहने की ।

हमारे कदमों की सधी हुई चाल से
उन्हें अपना पुरूषवादी वर्चश्व
ढहता नजर आता है
इसलिए वे
नई-नई तरकीबों से
हमारे रास्तों और कदमों को
अवरोधित करते रहते हैं हमेशा।

हमारी आधी आबादी होने के बावजूद
वे कुंडली मारे बैठे हैं हमारे अस्तित्व पर
गोया वे दुर्योधन हैं
जो हमारे सपनों और इच्छाओं को
फलने-फूलने के लिए
कहीं भी
सुई की नोंक के बराबर भी
जगह देने को तैयार नहीं हैं।

 जो खुश दिखता है

जो खुश दिखता है
जरूरी नहीं,
कि वह खुश हो ही ;
खुशी ओढ़ी भी तो जा सकती है
ठीक वैसे ही
जैसे अपने देश के
करोड़ों भूखे , नंगे लोग
पेट की आग बुझाने की असफल कोशिश में
जिंदगी की चक्की में
पिसे जा रहें हैं
फिर भी  खुशी से
जिए जा रहे हैं !

अभाव और दुःखों के
गहन अंधकार में
सुख और साधनों की
एक  क्षीण-सी लौ का भी सहारा नहीं है
उनके जीवन में
फिर भी
करोड़ों पथराई ऑंखों में
ऑंसुओं को बेदखल करते हुए
न जाने कौन से
सुनहरे भविष्य के सपने तैर रहे हैं
जिन्हें पाने की मृग-मरीचिका में
वे घिसटते हुए दौड़ रहे हैं
सिसकते हुए हॅंस रहे हैं
और मरते हुए जी रहे हैं ।

जवानी में ही झुर्रियों भरे
असंख्य दयनीय चेहरों पर
चिपकी हुई बेजान मुस्कुराहटें देखकर
मेरा यह विश्वास लगातार गहराता जा रहा है
कि जो खुश दिखता है
जरूरी नहीं ,
कि वह खुश हो ही ;
खुशी ओढ़ी भी तो जा सकती है !

 संपर्क-
उत्तरी शकुननगर,
सिविल लाइन्स ,फतेहपुर,0प्र0
मो0 & 9336453835
bZesy&premnandan@yahoo.in

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

कहानी-आस्था की अॅंधेरी खोह का सच

                    25 दिसम्बर 1980 को उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के फरीदपुर नामक गांव में जन्में प्रेमचंद्र नंदन ने लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से की । लगभग दो वर्षों तक पत्रकारिता करने और कुछ वर्षों तक इधर-उधर भटकने के उपरांत अध्यापन के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ एवं समसामयिक लेखों आदि का लेखन एवं विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। एक कविता संकलन -सपने जिंदा हैं अभी , 2005 में प्रकाशित ।
               

आस्था की अॅंधेरी खोह का सच




 प्रेम नंदन

                    यह एक काल्पनिक कथा है।इसके चरित्र, स्थान, घटनायें, मंतव्य सभी कुछ काल्पनिक हैं। इनका वास्तविक जीवन से कोई भी संबंध नहीं है-लेखक।
                    यमुना नदी के किनारे स्थित एक भव्य आश्रम। आश्रम के बीचो बीच एक विशाल और भव्य मंदिर। मंदिर से सटा हुआ साधुओं एवं आश्रम के महंत का आलीशान निवास। मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक गौशाला, जहॉ भक्तों द्वारा दान की गई सैकड़ों गायें जो साधु-सन्यासियों को दूध घी से नहलाने के लिए हमेशा तैयार रहा करती थीं। आश्रम के एक कोने में भक्तों एवं आगन्तुकों के ठहरने और विश्राम करने के लिए एक विशाल तिमंजिली इमारत ।थोड़े कम शब्दों में कहें तो एक पंचसितारा आश्रम।आश्रम में साधुओं-सन्यासियों की भारी फौज। आश्रम के महंत का पूरे क्षे़त्र में बड़ा सम्मान था और आश्रम में ‘सेवा‘ करने वाले एवं चढ़ावा चढ़ाने वाले भक्तों का तांता लगा रहता था। नेताओं और मंत्रियों तक का उस आश्रम में आना-जाना था। दूर-दूर तक आश्रम की धाक थी और लोगो का मानना था कि बाबा की जिस पर भी कृपा हो जाये उसके सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और उनकी सेवा करने से आदमी धनधान्य से परिपूर्ण हो जाते हैं। इसी विश्वास पर सवार होकर बाबा की कीर्ति दूर तक फैली थी और आश्रम में बारहों महीने श्रद्धालुओें की भारी भीड़ जमा रहती थी।
                  उसी क्षेत्र के एक कस्बे में रामराज का परिवार रहता था जो बाबा का परमभक्त था । रामराज के यहॉ दूध का व्यवसाय होता था और बाबा की दया से खूब फल-फूल रहा था।रामराज का परिवार अपने व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था और जैसे जैसे उसकी तरक्की हो रही थी उसके चौगुने अनुपात में बाबा पर उसके पाविार की आसक्ति भी बढ़ती जा रही थी। उसके परिवार का कोई न सदस्य प्रतिदिन बाबा के आश्रम में सेवा के लिए हाजिर रहता, उसकी पत्नी , बेटे और बेटी भी बाबा की सेवा करके अपने को सौभाग्यवती समझती । रामराज के परिवार की इस भक्तिभावना के कारण आश्रम में उसके परिवार को विशिष्ट दर्जा प्राप्त था। बाबाजी की दया से रामराज का एक पुत्री और तीन पुत्रों का भरा-पूरा परिवार था। सम्पन्न होने के साथ-साथ बाबाजी का विश्वासपात्र होने के कारण पूरे क्षेत्र में उसका बड़ा सम्मान था। रामराज के परिवार की ही तरह पूरे क्षेत्र में तमाम ऐसे परिवार थे जो आश्रम के स्थायी सेवक थे।
                      रामराज के परिवार का छोटा से छोटा काम भी बाबा की अनुमति के बिना न होता था।एक तरह से उसके परिवार के सभी निर्णयों पर बाबा का एकाधिकार था ।
                       रामराज का बड़ा लड़का रोहित पढ़-लिखकर जब रेलवे में अफसर हो गया तो उसकी शादी के लिए तमाम लड़की वाले आने लगे। रामराज उनसे कहता कि पहले बाबाजी लड़की देखेंगें, वे जो लड़की पसंद करेंगे वही उनकी बहू बनेगी।
                    कुछ लड़की वाले नाक-भौं सिकोड़ते ,कुछ अपनी लड़की बाबाजी केा दिखाने को तैयार हो जाते। इस तरह रामराज के लड़के के लिए जो भी रिस्ते आते उनमें से बहू ढूढने का काम बाबाजी के जिम्मे सौंप कर रामराज निश्चिंत हो अपने काम धंधें में मस्त हो जाते।
                   बाबा का लड़की देखने का तरीका बड़ा अजीब था। वह लड़कियों को अकेले अपने कमरे में देखता,वह उन्हे अपने सामने बैठा लेता ,उनके दोनो हाथ अपने हाथ में लेकर देर तक घूरता रहता ,बाबा की तीक्ष्ण नजरें उनके शरीर को बींधती रहती। फिर बाबा लड़कियों से तरह -तरह क सवाल करता जिसके चलते कुछ लड़कियों ने तो अपनी तरफ से मना कर दिया कुछ के मॉ-बापों ने जब बाबा की हरकतें सुनी तो उन्होंने भी मना कर दिया।
पता नहीं क्या बात थी कि अब पूरे क्षे़त्र में कोई भी परिवार रामराज के यहॉ अपनी बेटी देने को तैयार न था !
रामराज के एक दूर के रिस्तेदार रामदीन कन्नौज में रहते थे। वह रिटायर्ड फौजी थे और आधुनिक विचारों के आदमी थे । उनकी इकलौती और लाडली बेटी नेहा, कानपुर में रहकर पढ़ाई कर रही थी । एक बार किसी कार्यक्रम में वे रामराज के यहॉ आये तो उन्होने रामराज से अपनी बेटी नेहा के विवाह की बात चलायी तो रामराज ने कहा कि बहू तो बाबाजी ही पसंद करेंगे, ऐसा करो किसी दिन अपनी बेटी को लेकर आश्रम आ जाओं वहीं पर हम लोग भी लड़की देख लेंगे और बाबाजी भी देख लेंगे अगर लड़की बाबाजी को पसंद आ गयी तो रिस्ता पक्का समझो।
रामदीन बोले-‘‘शादी आपके लड़के को करनी है या बाबाजी को । ऐसा करिये आप किसी भी दिन हमारे घर आकर लड़की देख लीजिए ,अपने लड़के को भी लेते आईये ’’
                       रामराज तपाक से बोले-‘‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता, हमारे घर का कोई भी काम बाबाजी की अनुमति के बिना नहीं होता,उनकी इच्छा हमारे लिए भगवान की इच्छा है। हमारे घर की बहू भी वही लड़की बनेगी जिसे बाबाजी पसंद करेंगे। यदि आप हमारे यहॉ अपनी लड़की का विवाह करना चाहते हैं तो जैसा हम कहते हैं वैसा करना पड़ेगा।’’

                    रामदीन पहले तो हिचकिचाये फिर तैयार हो गये।उन्हे और क्या चाहिये था ।रामराज का धनधान्य से भरा पूरा परिवार, उस पर खूबसूरत और नौकरीपेशा लड़का ,वे बाबाजी को अपनी लड़की दिखाने के लिए तैयार हो गये।
                   रामराज के बताये समय के अनुसार रामदीन परिवार सहित शरदीय नवरात्रि के पावन दिनों में बाबाजी के आश्रम जा पहुचे, जहॉ पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार रामराज अपने पूरे परिवार के साथ आश्रम में पहले से ही मौजूद था।
                    नेहा ने देखा, बाबाजी एक तख्त पर कमर में पीताम्बर लपेटे लेटे हुए हैं। रामराज की पत्नी उनके पैर दबा रही है और उनकी बेटी बाबा के शरीर पर मालिश करने में लगी है।
                 रामदीन ने आश्रम पहुंचकर सपरिवार बाबा के चरणेां में साष्टांग प्रणाम किया। रामराज के परिवार के सभी सदस्यों को नेहा पहली ही नजर में पसंद आ गई क्योकि नेहा वास्तव में खूबसूरत थी। लेकिन उनकी पसंद बाबाजी की मुहर के बिना बेकार थी।रामराज बोले-हमें तो आपकी लड़की बहुत पसंद है लेकिन जब तक बाबाजी उसे पसंद नहीं कर लेते हम कुछ नहीं कह सकते ।
इस बीच बाबाजी भी नेहा को कनखियों से देख चुके थे। थोड़ी देर बाद वे तख्त से उठकर अपने कमरे की ओर जाते हुए बोले-‘‘ लड़की को मेरे कमरे में भेजो।’’
नेहा के साथ उसके मॉ-बाप भी बाबा के कमरे की ओर जाने लगे तो रामराज ने उन्हें रोककर कहा-‘‘ बाबाजी अकेले में ही लड़की देखते हैं।’’

                          नेहा ने बाबा के कमरे में घुसते ही देखा कि पूरा कमरा राजसी ठाट-बाट से सजा है और कमरे में खुशबूदार अगरबत्ती का धुऑ भरा हुआ है। बाबा एक तख्त पर बैठे हुए मुस्कुराते हुए नेहा को उसी तख्त पर बैठने का इशारा किया। नेहा बाबा के सामने ही चुपचाप बैठ गई। बाबाजी ने जब नेहा के दोनो हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी ऑखों में घूरकर देखा तो नेहा थर-थर कॉपने लगी ।
बाबाजी बोले-‘‘ डरो नही बेटी, तुम्हारा भाग्य बहुत तेज है जो तुम इतने अच्छे घर की बहू बनने जा रही हो।’’
नेहा निरीह-सी चुपचाप बैठी रही। बाबा की नजरें उसके शरीर पर चीटियों की तरह रेंग रहीं थीं। उसकी नाजुक हथेलियॉ अब भी बाबा के हाथों में थी ।
                             नेहा को वहॉ अपनी सांस घुटती जैसी महसूस हुई उसने अपने हाथ बाबाजी के हाथों से छुड़ाया और दरवाजे की ओर तेजी से भागी।जब वह आश्रम के बरामदे में बैठे अपने मॉ-बाप के पास पहुॅची ,वह हॉफ रही थी।
                       उसके पीछे-पीछे बाबा मुस्कूराता हुआ चला आ रहा था । बाबा ने दूर से ही कहा - रामराज तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, तुम्हें साक्षात लक्ष्मी बहू के रूप में मिलने जा रही है।ऐसा करो आज का दिन बहुत शुभ है । लड़का-लड़की और दोनेा के मॉ-बाप यहॉ मौजूद ही हैं । सगाई अभी और यहीं पक्की हो जानी चाहिए।
बाबाजी ने जैसे अपना फैसला सुनाया। बाबाजी की बात सुनकर दोनों परिवारों की खुशी का ठिकाना न रहा। नेहा को कुछ कहने का मौका ही न मिला और उसी दिन सगाई की रस्में वहीं आश्रम में ही पूरी हो गयीं और बाबाजी ने तीन महीने बाद शादी की तारीख भी पक्की कर दी । दोनो परिवार खुशी-खुशी अपने घरों को लौटकर शादी की तैयारियों में लग गये।
                               नेहा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई । वह रामदीन की इकलौती और लाडली बेटी थी इसलिए रामदीन ने उसकी शादी में जी खोलकर पैसा खर्च किया और बारात का शानदार स्वागत करके अपने जिगर के टुकड़े को ऑसुओं से भीगी शुभकामनाओं के साथ खुशी खुशी बिदा कर दिया।
मायके से बिदा होकर नेहा जब दोपहर को अपनी ससुराल पहुंची तो उसे सबसे पहले बाबाजी के आश्रम ले जाया गया । वहॉ पर रोहित और नेहा ने बाबाजी के चरणों में सिर रखकर आशीर्वाद लिया और बाबाजी ने भी दोनों को सदा सुखी रहनें का आशीर्वाद दिया। इसके बाद सब लोग घर लौट आये।
थकी होने के कारण नेहा को नींद आ गई। शाम को सात बजे के आस-पास उसकी ननद ने उसे जगाया और बोली- भाभी ,नहा करके जल्दी से तैयार हो जाओ, आश्रम चलना है।
नेहा ने कहा -‘‘अभी दोपहर को तो आश्रम गये थे, अब क्या जरूरत है?’’
उसकी ननद बोली-’’भाभी , हमारे यहॉ सभी कामों की शुरूआत बाबाजी के आर्शीवाद से ही होती है। आपकी भी नई जिंदगी शुरू होने जा रही है इसलिए बाबाजी का आर्शीवाद तो लेना ही पडे़गा!‘‘
नेहा कुछ देर बाद तैयार हो गयी । और अपने सास-ससुर, पति,ननद और देवरों के साथ आश्रम के लिए निकल पड़ी।
लगभग नौ बजे वे सब आश्रम पहुंचे।वहॉ सभी के खाने-पीने एवं ठहरने की पहले से ही व्यवस्था थी। खा-पीकर परिवार के सभी लोग एक कमरे में बैठे गपशप कर रहे थे तभी नेहा की सास ने उससे कहा चलो बहू , बाबाजी की सेवा कर आते हैं ।
                                  नेहा अपनी सास के साथ जब बाबा के कमरे में पहुंची ,बाबा अपने कमरे के एक तख्त पर टेक लगाये बैठा हुआ मंद मंद मुस्कुरा रहा था उसकी मुस्कान से ही लग रहा था कि वह बहुत देर से उनका ही इंतजार कर रहा था।
दोनों ने कमरे में पहुंचते ही सर्वप्रथम बाबा जी के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया ,फिर नेहा की सास बाबा के पैर दबाने लगी नेहा भी सास के पास ही फर्श पर बैठ गई।सास ने उसे भी पैर दबाने के लिए कहा। नेहा भी मन मारकर बाबाजी के पैर दबाने लगी। कुछ देर तक दोनों सिर झुकाये बाबाजी के पैर दबाती रहीं और बाबा धर्म के उपदेश देता रहा। फिर बाबाजी ने नेहा की सास को ऑख के इशारे से बाहर जाने को कहा तो नेहा की सास बाहर जाने लगी। नेहा भी साथ में जाने के लिए खड़ी हुई तो सास ने उससे कहा- बहू ,तुम्हें अभी और सेवा करनी है।तुम बाबाजी की थेाड़ी देर और सेवा करो, मैं अभी आती हॅू।
                                यह कहकर नेहा की सास कमरे से बाहर निकल गयी और कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। नेहा अवाक् सी कभी बाबा की तरफ तो कभी दरवाजे की ओर देखने लगी । बाबा के चेहरे पर इस समय भी एक विचित्र मुस्कान तैर रही थीं। उसकी सास के बाहर जाते ही बाबा ने नेहा को बैठने के लिए कहा लेकिन नेहा नहीं बैठी। ऐसे में बाबा ने नेहा का हाथ पकड़कर अपने पास बैठाना चाहा तो नेहा ने उसका हाथ छिटक दिया और दरवाजे की ओर दैाड़ पड़ी।
                                 बाबा ने चीते की फुर्ती से लपक कर नेहा को बीच में ही पकड़ लिया और अपनी बलिष्ठ भुजाओं से उठाकर उसे तख्त पर पटककर बोला-इस परिवार का नियम है कि उसकी बहू-बेटियॉ सबसे पहले बाबा को समर्पित होती हैं फिर पति को,तुम्हारी सास ने तो तुम्हें यह सब बताया ही होगा।
नेहा जोर से चीखी और बाबा को एक जोरदार धक्का दिया जिससे बाबा तख्त के नीचे गिर गया लेकिन वह नेहा के उठने से पहले ही उठकर नेहा पर टूट पड़ा।नेहा चीखती, चिल्लाती और गिड़गिड़ाती रहीं लेकिन उस रंगे सियार ने नेहा को तब तक नहीं छोड़ा जब तक वह बेहोश नहीं हो गई।
                           जब नेहा को होश आया तो वह अपनी ससुराल में लेटी थी । सास उसका माथा सहला रहीं थी और पति रोहित समेत घर के सभी लेाग उसको घेरे खड़े थे नेहा के होश में आते ही सबने राहत की सॉस ली । अपने सामने सबको देखकर नेहा की आंखों में अंगारे दहक उठे। उसने सास का हाथ झटक कर उसे अपने से अलग किया और उठने की कोशिश की तो उसे लगा कि उसका शरीर निर्जीव हो गया है ,पैर सुन्न हो गये हैं। उसने झटके के साथ दोबारा उठने का प्रयास किया तो लड़खड़ाकर पलंग के नीचे गिर गई। रोहित ने नेहा को उठाना चाहा तो उसने फुफकार कर कहा- कमीने ,छूना नहीं मुझे नहीं तो तेरी जान ले लूंगी....। दूर हट...।
नेहा का यह रूप देखकर रोहित सहित उसका पूरा परिवार सकते में आ गया।नेहा की सास गिड़गिड़ाते हुए बोली -बहू , यह हमारे परिवार का नियम ...। नेहा बीच में ही चीख पड़ी -चुप हो जा कुतिया,नहीं तेा मुंह नोच लूंगी, परिवार का नियम है.....! इतना कहकर वह जोर-जोर से रोने लगी।
                   जब समझाने से बात न बनी तो रामराज ने उसे धमकी देते हुए कहा- जो हुआ है उसे बाबाजी का आशीर्वाद समझकर भूल जाओं इसी में तुम्हारी भलाई है,वरना....। इतना सुनते ही नेहा में न जाने कहॉ से इतनी ताकत आ गई कि उसने उठकर रामराज का गला पकड़ लिया और बड़ी मुश्किल में सबके छुड़ाने पर ही उसे छोड़ा। नेहा का यह रूप देखकर सभी सकपका गये और कमरे बाहर निकल गये। नेहा ने किसी तरह कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और अपने बाबूजी को फोन करने लगी।
नेहा ने रो-रोकर अपने साथ हुई हरकत के बारे में अपने मॉ-बाप को बताया तो वे सन्न रह गये। अभी कल ही उन्होने अपने जिगर के टुकड़े को बड़े अरमानों के साथ बिदा किया था और अभी चौबीस घण्टे भी नहीं हुए यह सब हो गया। वे बदहवास से हो गये और जैसे थे वैसे ही दो-चार रिस्तेदारों को लेकर नेहा की ससुराल पहुंचे। मॉ-बाप की आवाज सुनकर ही नेहा ने दरवाजा खोला और अपनी मॉ की बाहों में चीखकर गिर पड़ी। बेटी की हालत देखकर उसके मॉ-बाप फफककर रो पड़े।
                      अब तक रामराज क घर में पास-पड़ोस की औरतों और लोगों का जमघट लग चुका था। सभी आश्चर्य और अफसोस जाहिर कर रहे थे।नेहा के मॉ-बाप को देखकर रामराज परिवार सहित घर से गायब हेा चुका था।
रामदीन रिस्तेदरों और पड़ोस के कुछ लोगों के साथ अपनी बेटी को लेकर सीधे थाने पहुंचकर और अपनी बेटी के साथ हुई घटना पूरे विस्तार से बताई और बाबा और रामराज को पूरे परिवार सहित सभी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी । पुलिस ने नेहा का मेडिकल चेकअप कराकरं , अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही का आश्वासन देकर उन्हें घर भेज दिया।
                 बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस रामराज को उसके पूरे परिवार सहित जेल भेज दिया और बाबा के आश्रम को सीज कर दिया लेकिन बाबा को पुलिस अभी तक नहीं पकड़ पायी है। सुना है कि वह बाबा भेष बदलकर किसी नेता की शरण में छिपा हुआ है।
                   प्रदेश के इस हाई प्रोफाइल हो चुके केस ने न्यूजपेपरों और टी0वी0 चैनलों की टीआरपी बढ़ा दी है। एक दिन इन्ही में से एक टी0वी0 चैनल मे बाबा पुलिस के समक्ष समर्पण करते हुए प्रकट हुआ और अपने भक्तों को सम्बोधित करते हुए बोला-‘‘यह मेरे विरोधियों की चाल है जिन्होने मुझ पर ऐसे घिनौने आरोप लगाये हैं लेकिन मुझे विश्वास है कि सच जल्दी ही लोगों के सामने आ जायेगा । ’’
कुछ महीनों बाद ही बाबा को जमानत मिल गई और वह पुनः अपने आश्रम में लोगों को , आस्था की अॅधेरी खोह में छिपे बैठे भगवान से मिलाने के सपने दिखाकर मौज करने लगा। अभी और न जाने कितनी लड़कियों को उस बाबा का ग्रास बनना पड़ेगा यह बाबा के भगवान को भी नहीं पता !



उत्तरी शकुननगर,
सिविल लाइन्स ,फतेहपुर,उ0प्र0
मो0 9336453835

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

प्रेम नंदन की कविता


बूढ़ी साईकिल

  















     






प्रेम नंदन





मेरे मोहल्ले की
एक बूढ़ी, जर्जर साईकिल
अपनी पीठ पर
पूरे परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी लादे
रोज भोर होते ही
मेरे नींद के कच्चे पुल से
खड़खड़ाते हुए गुजरती है

मेरी नींद का पुल
उसकी खड़खड़ाहट का बोझ सह नहीं पाता
भरभराकर गिर पड़ता है
और मैं जम्हाई लेते हुए कहता हूं -
’’लगता है सुबह हो गई!’’


यह रोज का नियम है
मौसम के सारे वार
प्रायः बौने साबित हुए हैं
साईकिल की खड़खड़ाहट के आगे।


कभी-कभी शाम को
दरवाजे पर बैठकर
लौटते हुए देखता हूं साईकिल को
तो पूंछ बैठता हूं-
’’कैसी हो?’’
वह अपनी धॅंसी ऑंखें बाहर निकालकर
बस इतना कहती है-
’’ठीक हॅूं बाबूजी!’’
और अपनी खड़खड़ाहट मेरे कानो में ठूंसते हुए
अपने घर की ओर बढ़ जाती है
मैं उसके कैरियर पर बॅंधे
आटा ,चावल, सब्जी, तेल वगैरह को
देखता रहता हूं अपलक
अगले मोड़ पर 
उसके मुड़ जाने तक।
                                    
        अंतर्नाद
     उत्तरी शकुननगर,
     फतेहपुर,उ0प्र0
     मो 09336453835

रविवार, 23 सितंबर 2012

लघु कथाएं-


बंजर भूमि   
खेमकरण सोमन
लडका छब्बीस साल का था और लडकी चौबीस साल की। दोनों में जबरदस्त प्यार था व दोनों ही रिसर्च स्कॉलर थे।लडकी ने अपने घर वालों को बता दिया कि ऐसी-ऐसी बात है, ये दिन ये रात है। घर वाले भी बहुत खुश हुए। लडकी के पिता ने कहा- लडका दूसरी जाति का है, इससे हमें कोई समस्या नहीं है। हमें बेहद खुशी है कि हमारी पढी-लिखी बच्ची ने एक सही जीवनसाथी की खोज की है।
एक दिन लडके ने लडकी से कहा- अवन्तिका, मुझे उस दिन का इन्तजार है जब हमारी शादी होगी और तुम्हारे पिताजी मुझे अच्छा खासा दहेज दे पायेंगे। तब मैं अपने बहुत से सपने साकार कर पाऊंगा।लडके की बात सुनकर लडकी आहत हुई। उसने लडके को ध्यान से देखा। तो लडका उसे बंजर भूमि के समान नजर आया। हां! उस बंजर भूमि की तरह जो उपजाऊ होने का स्वाद नहीं जानती।लडकी ने उसी दिन एक निर्णय लिया।
 
पता - प्रथम कुंज, अम्बिका विहार, ग्राम डाक-भूरारानी, रुद्रपुर, जिला- ऊधमसिंह नगर -263153
            
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प्रेम नंदन
जून की तपती दोपहर। एक दूरसंचार कंपनी के विशालकाय विज्ञापन बोर्ड की छाया में, पसीने से लथपथ एक रिक्सा चालक आकर खड़ा हुआ। उसने सिर पर बॅंधें अगौंछे को खोला और उससे माथे का पसीना पोंछने लगा। पसीना पोंछने के बाद वह अॅगौंछे से हवा करता हुआ रिक्से की टेक लेकर खड़ा हो गया और जेब से बीड़ी निकालकर सुलगाने लगा।उसने बीड़ी के दो- तीन लम्बे कस खींचे तो खांसी गई। वह खो- खो करने लगा। खांसी के कारण उसकी ऑखों में ऑसू गये।वह ऑखें मलने लगा।
      तभी उसके मैले- कुचैले पैंट की जेब में रखे मोबाइल की घंटी बलने लगी। उसे अगौंछे से पसीना पोछते हुए जेब से मोबाइल निकाला और हैलो- हैलो करने लगा।हॉ भइया, अरे नहीं भइया। दो घंटे हो गये रिक्सा खींचते एक चक्कर लगा चुका हूं।पूरे शहर की एक भी सवारी नहीं मिली अभी तक।पूरा शहर दुबका पड़ा है, अपने-अपने घरों में। तेज धूप और कटीली लू ने कैद कर दिया है सभी को घरों के अंदर ।तुम्हारे क्या हाल हैं भइया, कुछ कमाया कि नहीं?
     रिक्से वाला शायद अपने किसी परिचित रिक्से वाल से मोबाइल पर बात कर रहा था।बीड़ी के एक-दो कस खींचने के बाद वह फिर मोबाइल पर बतियाने लगा । नहीं भइया अब कहीं जाउॅगा।सड़कें एकदम सुनसान पड़ीं हैं।आदमी क्या चिड़िया तक नहीं दिखाई पड़ रही हैं।दीवारों पर चिपके पोस्टरों और विज्ञापन बोर्डो में लड़के-लड़कियॉं प्रचार करते दिखाई दे रहे हैं बस।इतना कहकर उसने मोबाइल बंद करके जेब के हवाले किया और जिस विज्ञापन बोर्ड की छाया में खड़ा था ,उसे गौर से देखने लगा।
    तब तक उसकी बीड़ी बुझ चुकी थी। उसने दूसरी बीड़ी सुलगाई और कस खींचने लगा।
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