सोमवार, 23 सितंबर 2013

अनवर सुहैल की कविताएं


 















09 अक्टूबर 1964 जांजगीर छत्तीसगढ़

दो उपन्यास, तीन कथा संग्रह और एक कविता संग्रह प्रकाशित

संकेत नामक लघुपत्रिका का सम्पादन

कोल इण्डिया लिमिटेड की एक भूमिगत खदान में


वरिष्ठ खान प्रबंधक 




अनवर सुहैल की कविताएं



1.

घटनाएं




हो किसी और जगह

कुछ भी गड़बड़

हमें तनाव नहीं होता

बल्कि हम ये तक कह देते हैं

कि सरकार और मीडिया

दोनों बोल रहे झूठ

मरने वालों के आंकड़े

क्या इतने कम होंगे?



यदि ऐसा ही कुछ घटे

अपने साथ

या अपनों के साथ

तब समझ आता

आटे-दाल का भाव!



2.

स्मार्ट बच्चे




हमें कुंद बच्चे पसंद नहीं

हमें चाहिए स्मार्ट बच्चे

जो हों सिर्फ अपने घर में

बाकी सारे बच्चे हों भांेदू



बच्चों को बना दिया हमने

अंक जुटाने की मशीन

सौ में सौ पाने के लिए

जुटे रहते हैं बच्चे



मां-बाप के अधूरे सपनों को

पूरा करने के चक्कर में

बच्चे कहां रह पाते हैं बच्चे!

वज़नदार किताबों के

दस प्वाइंट के अक्षरों से जूझते बच्चों को

इसीलिए लग जाता चश्मा

होता अक्सर सिर-दर्द!



बच्चे नहीं जानते

उन्हें क्या बनना है

मां-बाप, रिश्तेदार और पड़ोसी

दो ही विकल्प तो देते हैं

इंजीनियर या डॉक्टर

बच्चा सोचता है

सभी बन जाएंगे इंजीनियर और डॉक्टर

तो फिर कौन बनेगा शिक्षक,

गायक, चित्रकार या वैज्ञानिक



बच्चे चाहते ऊधम मचाना

लस्त हो जाने तक खेलना

चाहते कार्टून देखना

या फिर सुबह देर तक सोना

बच्चे नहीं चाहते जाना स्कूल

 नहीं चाहते पढ़ना ट्यूशन

 नहीं चाहते होमवर्क करना



तथाकथित स्मार्ट बच्चों ने

नहाया नहीं कभी झरने के नीचे

( इसमें रिस्क जो है )

तालाब किनारे कीचड़ में

लोटे नहीं स्मार्ट बच्चे

अमरूद चोरी कर खाने का

इन्हें अनुभव नहीं



स्मार्ट बच्चे सिर्फ पढ़ा करते हैं

स्मार्ट बच्चे गली-मुहल्ले में नहीं दिखा करते

स्मार्ट बच्चे टीचरों के दुलारे होते हैं

स्मार्ट बच्चों पर सभी गर्व करते हैं

शिक्षक, माता-पिता और नगरवासी!



बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती स्मार्ट बच्चों को

वही बच्चे जब बनते ओहदेदार

ओढ़ लेते लबादा देवत्व का

नहीं रह पाते आम आदमी



इस बाज़ारू-समाज में भला

कौन आम-आदमी बनने का विकल्प चुने?

कौन असुविधाओं को गले लगाए?

3.

बाज़ार




बाज़ार अब वहां नहीं होता

जहां सजती हैं दुकानें

रहते हैं क्रेता-विक्रेता



आज घर-घर सजी दुकानें

फेरीवालों, अख़बारों के

टीवी, इंटरनेट के

मोबाईल फोन के ज़रिए

बाज़ार घुसा चला आया

सबके दिलो-दिमाग़ में भी!



4.

अनुपयोगी




जिस तरह स्टोर में पड़ा

वाल्व वाला भारी-भरकम रेडियो

श्वेत-श्याम पोर्टेबल टीवी

उसी तरह आज बुजु़र्ग

हमारे घरों से

हो गए ग़ायब

क्या हम भी नहीं

हो जाएंगे एक दिन

उपेक्षित, अनुपयोगी, बेकार

कैसा लगा मेरे यार!!






5.

अम्मा



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

वरना बुजुर्गों के प्रति बढ़ती लापरवाही से

तुम्हें कितनी तकलीफ़ होती



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने आंखें मूंद लीं

वरना बीवी के गुलाम

और बाल-बच्चों में मगन

अपने बेटों का हश्र देख

तुम बहुत दुखी होतीं



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

धर्म-ग्रंथों में छपे शब्द

अब कोई नहीं बांचता

कि मां के पैरों के

नीचे होती है जन्नत

कि जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

वरना तुम्हें अक्सर

सोना पड़ता भूखे पेट

क्योंकि सुन्न हुए हाथों से

तुम बना नहीं पाती रोटियां

या घड़ी-घड़ी चाय



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

वरना बुजुर्गों की देखभाल के लिए

सरकारों को बनाना पड़ रहा कानून

कि उनकी एक शिकायत पर

बच्चों को हो सकती है जेल

क्या तुम बच्चों की लापरवाहियों की शिकायत

थाना-कचहरी में करतीं अम्मा?

नहीं न!

अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद...



सम्पर्कः टाईप 4/3, बिजुरी,अनूपपुर मप्र 484440  09907978108
Anwarsuhail_09@yahoo.co.in,                     www.sanketpatrika.blogspot.com    

रविवार, 8 सितंबर 2013

पूनम शुक्ला की कविताएं


                                                        पूनम शुक्ला
जन्म - ज्येष्ठ पूर्णिमा ,२०२९ विक्रमी । 
26 जून 1972
जन्म स्थान - बलिया , उत्तर प्रदेश 

शिक्षा - बी ० एस ० सी० आनर्स ( जीव विज्ञान ), एम ० एस ० सी ० - कम्प्यूटर साइन्स ,एम० सी ० ए ० । चार वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की ,अब कविता,गीत ,लेख ,संस्मरण,लघुकथा लेखन मे संलग्न ।
कविता संग्रह " सूरज के बीज " अनुभव प्रकाशन , गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित । सनद,सिताब दियरा,पुरवाई,बीईंग पोएट ईपत्रिका ,जनसत्ता दिल्ली,जन-जन जागरण भोपाल,जनज्वार,सारा सच,लोकसत्य,सर्वप्रथम ,गुड़गाँव मेल में रचनाएँ प्रकाशित ।पाखी,समालोचन ,फर्गुदिया ब्लाग,शब्दांकन,नव्या,दैनिक जागरण में प्रतीक्षित ।
1. शार्ट कट

शार्ट कट
हाँ है ये भी 
एक रास्ता
लक्ष्य पाने का
पर ऐसा
जिसकी जड़ें
चट कर दी गई हों
दीमकों द्वारा
जिसका न हो
कोई आधार
बस लुढ़कता,गिरता,
काँपता,सिसकता,
लार टपकाता,
डरता,कनखियों से
लोगों को निहारता,हारता
किसी भी तरह पहुँच गया हो
और गिनता हो पल
कि कब तक 
खड़ा रह पाऊँगा मैं,
अब हुआ धराशाई
अब लुढ़का,गिरा,पड़ा
कुचला जाऊँगा मैं ।

तो क्यों बनती हैं नीतियाँ
शार्ट कट की
क्यों बनती हैं सीढ़ियाँ
शार्ट कट की
लम्बी ही होती जा रही है लिस्ट
अरे कोई लगाम क्यों नहीं लगाता ?
शार्ट कट ही तो है कि
जगह-जगह रिजर्व 
कर दी गईं हैं सीटें
कमजोर को मजबूत जो बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बलत्कृत को 
कर दिया जाता है पुरस्कृत
उन्हें देवियाँ जो बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बाँट दिए जाते हैं
अनपढ़ों में लैपटाप
उन्हें जल्दी इंजीनियर बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बच्चों में बाँट दिया जाता है
मिड डे मील
जल्दी गरीबी हटाना है ।

नहीं !
नहीं होगा बदलाव
ऐसे कभी नहीं 
होगा बदलाव
तय करना होगा
एक लंबा रास्ता
एक साफ सुथरा रास्ता
और तब जो लक्ष्य मिलेगा न
उसकी जडों ने
पकड़ रखा होगा
मजबूती से धरा को
और तब
बच्चा लैपटाप बेचने
बाजार नहीं जाएगा
अप्रशिक्षित डाक्टर द्वारा
नहीं होगी मौंतें
औरतें नहीं होगी बलत्कृत
अयोग्य शिक्षक नहीं धरेगा
कमजोर नींव
और तब
शायद मिड डे मील की भी
जरूरत न पड़े ।

2. एसिड अटैक

उजबुजाता
छनछनाता
तेज आक्रोश से भरा
चुस्त दुरुस्त द्रव्य
एसिड भरा हुआ है 
बोतलों में
जो साफ कर देता है
चकत्ते,धब्बे
चमका देता है
घर,आँगन,संसद
और तुम फेंक देते हो
उन्हें चेहरों पर
मासूमों पर
कमजोरों पर ।
फेकना है तो
फेको न एसिड
जो भरा है
तुम्हारे भीतर
क्यों ? भ्रष्टाचार देखकर
बनता है न एसिड
बलात्कार देखकर
भीतर कुछ खौलता 
ही होगा
गल्तियाँ देखकर 
बड़े अधिकारियों की
आक्रोश से 
भर जाते हो कि नहीं ?
नेताओं के निकम्मेपन पर
भीतर कुछ
उजबुजाता तो
जरूर होगा
तो क्यों नहीं 
करते अटैक ?
अपने भीतर बनते
एसिड से करो अटैक
ये एसिड चमका देगा
समाज,संसद,देश ।

पता - 50 डी ,अपना इन्कलेव ,रेलवे रोड,गुड़गाँव - 122001
मोबाइल - 9818423425


शनिवार, 31 अगस्त 2013

हिंदी हाइगा के लिए महायज्ञ

संपादिका ऋता शेखर का हिंदी हाइगा के लिए महायज्ञ-"हिंदी-हाइगा"

-डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

हाइकु, हिंदी हाइकु, हाइगा और अब हिंदी हाइगा. जापान से नि:सृत यह विधा अब केवल जापानी भाषा की ही नहीं रह गयी, बल्कि दुनिया की अन्य भाषाएँ भी इस पर अपना प्यार छलका रही हैं. जिस प्रकार अरबी भाषा की काव्य-विधा ग़ज़ल ने अपने मोहपाश में विभिन्न भाषाओँ को क़ैद कर लिया, वही कशिश हाइकु में भी है. हिंदी के साहित्यकार भी हाइकु काव्य-विधा के आकर्षण, भाव ग्राह्य-क्षमता, गंभीरता तथा गहराई से प्रभावित हुए और हाइकु हिंदी साहित्य में उपस्थित हो गया. आज विपुल मात्रा में हाइकु लिखे जा रहे हैं. पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं. नए-नए संकलन आ रहे हैं. आज हाइकु पर गोष्ठियां व सेमिनार आयोजित हो रहे हैं। ये सब निश्चित रूप से हाइकु की दिनोंदिन बढ़ती जा रही लोकप्रियता के प्रमाण हैं.
जापानियों की हर तकनीक का विकास नैनो टेक्नोलोजी अर्थात सूक्ष्म तकनीक पर आधारित है और उनके निरंतर विकास करने व गतिशील होने का सर्वाधिक प्रबल प्रमाण यह 'सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की ओर प्रवाह' है। संभवत: इसी सोच का परिणाम हाइकु भी रहे होंगे. जब जापानी साहित्य के अभियंताओं ने सूक्ष्मतम छंद की कल्पना की होगी तो निश्चित रूप से 'गागर में सागर' या 'बिंदु में सिन्धु' की तलाश में  हाइकु ने अपना आकार ग्रहण कर लिया होगा. इस सूक्ष्मतम छंद को प्रतिष्ठा प्रदान करने का श्रेय मात्सुओ बाशो (१६४४-९४) को जाता है. सत्रहंवी सदी में जापान में उद्भूत इस छंद को वर्तमान में अनेक भाषाओँ ने आत्मसात कर लिया है. भारत में हाइकु लाने का श्रेय कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर को जाता है. वर्तमान में हिंदी ने हाइकु के साथ-साथ हाइगा का भी अनुकरण किया है. हाइगा जापानी चित्रकला तकनीक की एक विशिष्ट शैली है, जिसका तात्पर्य है- 'चित्र हाइकु'. इसे हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं की हाइकु को उसी के अनुकूल चित्र के साथ समायोजित कर देने की कला हाइगा है. हाइगा की शुरुवात भी सत्रहंवी सदी में जापान में ही हुई. अत: हाइगा को हाइकु आधारित चित्रमय कविता कह सकते हैं.
हिंदी में हाइकु के जितने प्रयास हुए हैं, उस दृष्टि से हाइगा के प्रयास बहुत नहीं हुए हैं. हिंदी हाइगा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास व कार्य अभी भी न्यून हैं. इस क्रम में सुश्री ऋता शेखर 'मधु' का नाम आज की तारीख में अग्रणी है, जिन्होंने इंटरनेट में एक ब्लॉग (www.hindihaiga.blogspot.com) के माध्यम से हिंदी हाइगा के उन्नयन का बीड़ा उठाया है. विभिन्न हाइकुकारों के हाइकुओं को हाइगा का रूप प्रदान कर ब्लॉग के माध्यम से पूरी दुनिया के समक्ष परोसने का यह श्रमसाध्य कार्य वह पूरी तन्मयता एवं सक्रियता से पिछले दो वर्षों से निरंतर कर रही हैं. उनकी इस लगन एवं समर्पण का ही प्रतिफल है कि उनके संपादन में 'हिंदी हाइगा' पुस्तक का प्रकाशन संभव हो सका. जहाँ तक मेरी जानकारी है हिंदी हाइगा के सन्दर्भ में इस प्रकार का यह प्रथम प्रयास है। यह एक समवेत संकलन है, जिसमें देश-विदेश के हिंदी के छत्तीस उत्कृष्ट हाइकुकारों के चुनिन्दा हाइगा सम्मिलित किये गए हैं। वरिष्ठ हाइकु-लेखिका एवं उत्कृष्ट चित्रकारा ऋता शेखर जी के संपादन एवं संयोजन में प्रकाशित यह पुस्तक 'हिंदी हाइगा' अपने आप में अनूठी एवं विशिष्ट है.   
हिंदी हाइगा के क्षेत्र में छिटपुट प्रयासों से दूर यह पुस्तक एकदिशीय लक्ष्य एवं पूर्ण समर्पण का परिणाम हैं. इस सार्थक परिणाम का पूरा श्रेय नि:संदेह 'मधु' जी को जाता है, जिन्होंने एक-एक हाइकुरूपी मनकों को इस प्रकार से इस मालारूपी पुस्तक में पिरोया है कि इस पुस्तक का पाठक-दर्शक पढ़कर-देखकर न केवल 'वाह-वाह' कह उठता है, बल्कि दांतोंतले उंगली दबाने को भी मज़बूर हो जाता है. उत्कृष्ट कार्य सदैव स्वयं बोलता है और यही कार्य इस हिंदी हाइगा पुस्तक में भी किया गया है, जिसकी आभा से चकाचौंध हुए बिना रह पाना मुश्किल है.
इस संकलन में जहाँ एक ओर हिंदी हाइकु के शलाका-पुरुष रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु' जी के हाइगा हैं, वहीँ वरिष्ठ हाइकु-लेखिकाओं डॉ. सुधा गुप्ता, डॉ. हरदीप संधू व डॉ. भावना कुंवर के भी हाइगा भी शामिल हैं. कुछ अन्य स्थापित हाइकुकारों एवं प्रतिभावान नए हाइकूकारों को भी इस संकलन में स्थान मिला है. हाइकु के अन्य स्थापित रचनाकारों में स्वयं संपादिका ऋता शेखर 'मधु', डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति, रवि रंजन, डॉ. अनीता कपूर तथा  प्रियंका गुप्ता आदि के नाम प्रमुख हैं. हाइकुकार दिलबाग विर्क, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, रचना श्रीवास्तव, डॉ. जेन्नी शबनम, रश्मिप्रभा, नवीन सी. चतुर्वेदी तथा एम. कुश्वंश आदि के हाइगा भी संकलन की आभा में वृद्धि करते हैं.
बड़े आकार की तिरपन पृष्ठ की यह पुस्तक विद्या प्रेस, पटना से प्रकाशित है, जिसके सभी पृष्ठ पूर्णतया रंगीन एवं लेमिनेटेड हैं. पुस्तक का मूल्य पांच सौ उञ्चास रुपये मात्र है.
हिंदी हाइगा के विकास-क्रम में इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए सुश्री ऋता शेखर 'मधु' जी को कोटिक बधाइयाँ। हिंदी हाइकु और हिंदी हाइगा जगत को भविष्य में भी उनसे इस तरह के और संकलनों की अपेक्षा रहेगी।



संपर्क-
अध्यक्ष- अन्वेषी संस्था
24/18, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)-212601
वार्तासूत्र- 9839942005, 8574006355
ई-मेल: doctor_shailesh@rediffmail.com

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

कहानी-आस्था की अॅंधेरी खोह का सच

                    25 दिसम्बर 1980 को उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के फरीदपुर नामक गांव में जन्में प्रेमचंद्र नंदन ने लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से की । लगभग दो वर्षों तक पत्रकारिता करने और कुछ वर्षों तक इधर-उधर भटकने के उपरांत अध्यापन के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ एवं समसामयिक लेखों आदि का लेखन एवं विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। एक कविता संकलन -सपने जिंदा हैं अभी , 2005 में प्रकाशित ।
               

आस्था की अॅंधेरी खोह का सच




 प्रेम नंदन

                    यह एक काल्पनिक कथा है।इसके चरित्र, स्थान, घटनायें, मंतव्य सभी कुछ काल्पनिक हैं। इनका वास्तविक जीवन से कोई भी संबंध नहीं है-लेखक।
                    यमुना नदी के किनारे स्थित एक भव्य आश्रम। आश्रम के बीचो बीच एक विशाल और भव्य मंदिर। मंदिर से सटा हुआ साधुओं एवं आश्रम के महंत का आलीशान निवास। मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक गौशाला, जहॉ भक्तों द्वारा दान की गई सैकड़ों गायें जो साधु-सन्यासियों को दूध घी से नहलाने के लिए हमेशा तैयार रहा करती थीं। आश्रम के एक कोने में भक्तों एवं आगन्तुकों के ठहरने और विश्राम करने के लिए एक विशाल तिमंजिली इमारत ।थोड़े कम शब्दों में कहें तो एक पंचसितारा आश्रम।आश्रम में साधुओं-सन्यासियों की भारी फौज। आश्रम के महंत का पूरे क्षे़त्र में बड़ा सम्मान था और आश्रम में ‘सेवा‘ करने वाले एवं चढ़ावा चढ़ाने वाले भक्तों का तांता लगा रहता था। नेताओं और मंत्रियों तक का उस आश्रम में आना-जाना था। दूर-दूर तक आश्रम की धाक थी और लोगो का मानना था कि बाबा की जिस पर भी कृपा हो जाये उसके सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और उनकी सेवा करने से आदमी धनधान्य से परिपूर्ण हो जाते हैं। इसी विश्वास पर सवार होकर बाबा की कीर्ति दूर तक फैली थी और आश्रम में बारहों महीने श्रद्धालुओें की भारी भीड़ जमा रहती थी।
                  उसी क्षेत्र के एक कस्बे में रामराज का परिवार रहता था जो बाबा का परमभक्त था । रामराज के यहॉ दूध का व्यवसाय होता था और बाबा की दया से खूब फल-फूल रहा था।रामराज का परिवार अपने व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था और जैसे जैसे उसकी तरक्की हो रही थी उसके चौगुने अनुपात में बाबा पर उसके पाविार की आसक्ति भी बढ़ती जा रही थी। उसके परिवार का कोई न सदस्य प्रतिदिन बाबा के आश्रम में सेवा के लिए हाजिर रहता, उसकी पत्नी , बेटे और बेटी भी बाबा की सेवा करके अपने को सौभाग्यवती समझती । रामराज के परिवार की इस भक्तिभावना के कारण आश्रम में उसके परिवार को विशिष्ट दर्जा प्राप्त था। बाबाजी की दया से रामराज का एक पुत्री और तीन पुत्रों का भरा-पूरा परिवार था। सम्पन्न होने के साथ-साथ बाबाजी का विश्वासपात्र होने के कारण पूरे क्षेत्र में उसका बड़ा सम्मान था। रामराज के परिवार की ही तरह पूरे क्षेत्र में तमाम ऐसे परिवार थे जो आश्रम के स्थायी सेवक थे।
                      रामराज के परिवार का छोटा से छोटा काम भी बाबा की अनुमति के बिना न होता था।एक तरह से उसके परिवार के सभी निर्णयों पर बाबा का एकाधिकार था ।
                       रामराज का बड़ा लड़का रोहित पढ़-लिखकर जब रेलवे में अफसर हो गया तो उसकी शादी के लिए तमाम लड़की वाले आने लगे। रामराज उनसे कहता कि पहले बाबाजी लड़की देखेंगें, वे जो लड़की पसंद करेंगे वही उनकी बहू बनेगी।
                    कुछ लड़की वाले नाक-भौं सिकोड़ते ,कुछ अपनी लड़की बाबाजी केा दिखाने को तैयार हो जाते। इस तरह रामराज के लड़के के लिए जो भी रिस्ते आते उनमें से बहू ढूढने का काम बाबाजी के जिम्मे सौंप कर रामराज निश्चिंत हो अपने काम धंधें में मस्त हो जाते।
                   बाबा का लड़की देखने का तरीका बड़ा अजीब था। वह लड़कियों को अकेले अपने कमरे में देखता,वह उन्हे अपने सामने बैठा लेता ,उनके दोनो हाथ अपने हाथ में लेकर देर तक घूरता रहता ,बाबा की तीक्ष्ण नजरें उनके शरीर को बींधती रहती। फिर बाबा लड़कियों से तरह -तरह क सवाल करता जिसके चलते कुछ लड़कियों ने तो अपनी तरफ से मना कर दिया कुछ के मॉ-बापों ने जब बाबा की हरकतें सुनी तो उन्होंने भी मना कर दिया।
पता नहीं क्या बात थी कि अब पूरे क्षे़त्र में कोई भी परिवार रामराज के यहॉ अपनी बेटी देने को तैयार न था !
रामराज के एक दूर के रिस्तेदार रामदीन कन्नौज में रहते थे। वह रिटायर्ड फौजी थे और आधुनिक विचारों के आदमी थे । उनकी इकलौती और लाडली बेटी नेहा, कानपुर में रहकर पढ़ाई कर रही थी । एक बार किसी कार्यक्रम में वे रामराज के यहॉ आये तो उन्होने रामराज से अपनी बेटी नेहा के विवाह की बात चलायी तो रामराज ने कहा कि बहू तो बाबाजी ही पसंद करेंगे, ऐसा करो किसी दिन अपनी बेटी को लेकर आश्रम आ जाओं वहीं पर हम लोग भी लड़की देख लेंगे और बाबाजी भी देख लेंगे अगर लड़की बाबाजी को पसंद आ गयी तो रिस्ता पक्का समझो।
रामदीन बोले-‘‘शादी आपके लड़के को करनी है या बाबाजी को । ऐसा करिये आप किसी भी दिन हमारे घर आकर लड़की देख लीजिए ,अपने लड़के को भी लेते आईये ’’
                       रामराज तपाक से बोले-‘‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता, हमारे घर का कोई भी काम बाबाजी की अनुमति के बिना नहीं होता,उनकी इच्छा हमारे लिए भगवान की इच्छा है। हमारे घर की बहू भी वही लड़की बनेगी जिसे बाबाजी पसंद करेंगे। यदि आप हमारे यहॉ अपनी लड़की का विवाह करना चाहते हैं तो जैसा हम कहते हैं वैसा करना पड़ेगा।’’

                    रामदीन पहले तो हिचकिचाये फिर तैयार हो गये।उन्हे और क्या चाहिये था ।रामराज का धनधान्य से भरा पूरा परिवार, उस पर खूबसूरत और नौकरीपेशा लड़का ,वे बाबाजी को अपनी लड़की दिखाने के लिए तैयार हो गये।
                   रामराज के बताये समय के अनुसार रामदीन परिवार सहित शरदीय नवरात्रि के पावन दिनों में बाबाजी के आश्रम जा पहुचे, जहॉ पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार रामराज अपने पूरे परिवार के साथ आश्रम में पहले से ही मौजूद था।
                    नेहा ने देखा, बाबाजी एक तख्त पर कमर में पीताम्बर लपेटे लेटे हुए हैं। रामराज की पत्नी उनके पैर दबा रही है और उनकी बेटी बाबा के शरीर पर मालिश करने में लगी है।
                 रामदीन ने आश्रम पहुंचकर सपरिवार बाबा के चरणेां में साष्टांग प्रणाम किया। रामराज के परिवार के सभी सदस्यों को नेहा पहली ही नजर में पसंद आ गई क्योकि नेहा वास्तव में खूबसूरत थी। लेकिन उनकी पसंद बाबाजी की मुहर के बिना बेकार थी।रामराज बोले-हमें तो आपकी लड़की बहुत पसंद है लेकिन जब तक बाबाजी उसे पसंद नहीं कर लेते हम कुछ नहीं कह सकते ।
इस बीच बाबाजी भी नेहा को कनखियों से देख चुके थे। थोड़ी देर बाद वे तख्त से उठकर अपने कमरे की ओर जाते हुए बोले-‘‘ लड़की को मेरे कमरे में भेजो।’’
नेहा के साथ उसके मॉ-बाप भी बाबा के कमरे की ओर जाने लगे तो रामराज ने उन्हें रोककर कहा-‘‘ बाबाजी अकेले में ही लड़की देखते हैं।’’

                          नेहा ने बाबा के कमरे में घुसते ही देखा कि पूरा कमरा राजसी ठाट-बाट से सजा है और कमरे में खुशबूदार अगरबत्ती का धुऑ भरा हुआ है। बाबा एक तख्त पर बैठे हुए मुस्कुराते हुए नेहा को उसी तख्त पर बैठने का इशारा किया। नेहा बाबा के सामने ही चुपचाप बैठ गई। बाबाजी ने जब नेहा के दोनो हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी ऑखों में घूरकर देखा तो नेहा थर-थर कॉपने लगी ।
बाबाजी बोले-‘‘ डरो नही बेटी, तुम्हारा भाग्य बहुत तेज है जो तुम इतने अच्छे घर की बहू बनने जा रही हो।’’
नेहा निरीह-सी चुपचाप बैठी रही। बाबा की नजरें उसके शरीर पर चीटियों की तरह रेंग रहीं थीं। उसकी नाजुक हथेलियॉ अब भी बाबा के हाथों में थी ।
                             नेहा को वहॉ अपनी सांस घुटती जैसी महसूस हुई उसने अपने हाथ बाबाजी के हाथों से छुड़ाया और दरवाजे की ओर तेजी से भागी।जब वह आश्रम के बरामदे में बैठे अपने मॉ-बाप के पास पहुॅची ,वह हॉफ रही थी।
                       उसके पीछे-पीछे बाबा मुस्कूराता हुआ चला आ रहा था । बाबा ने दूर से ही कहा - रामराज तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, तुम्हें साक्षात लक्ष्मी बहू के रूप में मिलने जा रही है।ऐसा करो आज का दिन बहुत शुभ है । लड़का-लड़की और दोनेा के मॉ-बाप यहॉ मौजूद ही हैं । सगाई अभी और यहीं पक्की हो जानी चाहिए।
बाबाजी ने जैसे अपना फैसला सुनाया। बाबाजी की बात सुनकर दोनों परिवारों की खुशी का ठिकाना न रहा। नेहा को कुछ कहने का मौका ही न मिला और उसी दिन सगाई की रस्में वहीं आश्रम में ही पूरी हो गयीं और बाबाजी ने तीन महीने बाद शादी की तारीख भी पक्की कर दी । दोनो परिवार खुशी-खुशी अपने घरों को लौटकर शादी की तैयारियों में लग गये।
                               नेहा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई । वह रामदीन की इकलौती और लाडली बेटी थी इसलिए रामदीन ने उसकी शादी में जी खोलकर पैसा खर्च किया और बारात का शानदार स्वागत करके अपने जिगर के टुकड़े को ऑसुओं से भीगी शुभकामनाओं के साथ खुशी खुशी बिदा कर दिया।
मायके से बिदा होकर नेहा जब दोपहर को अपनी ससुराल पहुंची तो उसे सबसे पहले बाबाजी के आश्रम ले जाया गया । वहॉ पर रोहित और नेहा ने बाबाजी के चरणों में सिर रखकर आशीर्वाद लिया और बाबाजी ने भी दोनों को सदा सुखी रहनें का आशीर्वाद दिया। इसके बाद सब लोग घर लौट आये।
थकी होने के कारण नेहा को नींद आ गई। शाम को सात बजे के आस-पास उसकी ननद ने उसे जगाया और बोली- भाभी ,नहा करके जल्दी से तैयार हो जाओ, आश्रम चलना है।
नेहा ने कहा -‘‘अभी दोपहर को तो आश्रम गये थे, अब क्या जरूरत है?’’
उसकी ननद बोली-’’भाभी , हमारे यहॉ सभी कामों की शुरूआत बाबाजी के आर्शीवाद से ही होती है। आपकी भी नई जिंदगी शुरू होने जा रही है इसलिए बाबाजी का आर्शीवाद तो लेना ही पडे़गा!‘‘
नेहा कुछ देर बाद तैयार हो गयी । और अपने सास-ससुर, पति,ननद और देवरों के साथ आश्रम के लिए निकल पड़ी।
लगभग नौ बजे वे सब आश्रम पहुंचे।वहॉ सभी के खाने-पीने एवं ठहरने की पहले से ही व्यवस्था थी। खा-पीकर परिवार के सभी लोग एक कमरे में बैठे गपशप कर रहे थे तभी नेहा की सास ने उससे कहा चलो बहू , बाबाजी की सेवा कर आते हैं ।
                                  नेहा अपनी सास के साथ जब बाबा के कमरे में पहुंची ,बाबा अपने कमरे के एक तख्त पर टेक लगाये बैठा हुआ मंद मंद मुस्कुरा रहा था उसकी मुस्कान से ही लग रहा था कि वह बहुत देर से उनका ही इंतजार कर रहा था।
दोनों ने कमरे में पहुंचते ही सर्वप्रथम बाबा जी के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया ,फिर नेहा की सास बाबा के पैर दबाने लगी नेहा भी सास के पास ही फर्श पर बैठ गई।सास ने उसे भी पैर दबाने के लिए कहा। नेहा भी मन मारकर बाबाजी के पैर दबाने लगी। कुछ देर तक दोनों सिर झुकाये बाबाजी के पैर दबाती रहीं और बाबा धर्म के उपदेश देता रहा। फिर बाबाजी ने नेहा की सास को ऑख के इशारे से बाहर जाने को कहा तो नेहा की सास बाहर जाने लगी। नेहा भी साथ में जाने के लिए खड़ी हुई तो सास ने उससे कहा- बहू ,तुम्हें अभी और सेवा करनी है।तुम बाबाजी की थेाड़ी देर और सेवा करो, मैं अभी आती हॅू।
                                यह कहकर नेहा की सास कमरे से बाहर निकल गयी और कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। नेहा अवाक् सी कभी बाबा की तरफ तो कभी दरवाजे की ओर देखने लगी । बाबा के चेहरे पर इस समय भी एक विचित्र मुस्कान तैर रही थीं। उसकी सास के बाहर जाते ही बाबा ने नेहा को बैठने के लिए कहा लेकिन नेहा नहीं बैठी। ऐसे में बाबा ने नेहा का हाथ पकड़कर अपने पास बैठाना चाहा तो नेहा ने उसका हाथ छिटक दिया और दरवाजे की ओर दैाड़ पड़ी।
                                 बाबा ने चीते की फुर्ती से लपक कर नेहा को बीच में ही पकड़ लिया और अपनी बलिष्ठ भुजाओं से उठाकर उसे तख्त पर पटककर बोला-इस परिवार का नियम है कि उसकी बहू-बेटियॉ सबसे पहले बाबा को समर्पित होती हैं फिर पति को,तुम्हारी सास ने तो तुम्हें यह सब बताया ही होगा।
नेहा जोर से चीखी और बाबा को एक जोरदार धक्का दिया जिससे बाबा तख्त के नीचे गिर गया लेकिन वह नेहा के उठने से पहले ही उठकर नेहा पर टूट पड़ा।नेहा चीखती, चिल्लाती और गिड़गिड़ाती रहीं लेकिन उस रंगे सियार ने नेहा को तब तक नहीं छोड़ा जब तक वह बेहोश नहीं हो गई।
                           जब नेहा को होश आया तो वह अपनी ससुराल में लेटी थी । सास उसका माथा सहला रहीं थी और पति रोहित समेत घर के सभी लेाग उसको घेरे खड़े थे नेहा के होश में आते ही सबने राहत की सॉस ली । अपने सामने सबको देखकर नेहा की आंखों में अंगारे दहक उठे। उसने सास का हाथ झटक कर उसे अपने से अलग किया और उठने की कोशिश की तो उसे लगा कि उसका शरीर निर्जीव हो गया है ,पैर सुन्न हो गये हैं। उसने झटके के साथ दोबारा उठने का प्रयास किया तो लड़खड़ाकर पलंग के नीचे गिर गई। रोहित ने नेहा को उठाना चाहा तो उसने फुफकार कर कहा- कमीने ,छूना नहीं मुझे नहीं तो तेरी जान ले लूंगी....। दूर हट...।
नेहा का यह रूप देखकर रोहित सहित उसका पूरा परिवार सकते में आ गया।नेहा की सास गिड़गिड़ाते हुए बोली -बहू , यह हमारे परिवार का नियम ...। नेहा बीच में ही चीख पड़ी -चुप हो जा कुतिया,नहीं तेा मुंह नोच लूंगी, परिवार का नियम है.....! इतना कहकर वह जोर-जोर से रोने लगी।
                   जब समझाने से बात न बनी तो रामराज ने उसे धमकी देते हुए कहा- जो हुआ है उसे बाबाजी का आशीर्वाद समझकर भूल जाओं इसी में तुम्हारी भलाई है,वरना....। इतना सुनते ही नेहा में न जाने कहॉ से इतनी ताकत आ गई कि उसने उठकर रामराज का गला पकड़ लिया और बड़ी मुश्किल में सबके छुड़ाने पर ही उसे छोड़ा। नेहा का यह रूप देखकर सभी सकपका गये और कमरे बाहर निकल गये। नेहा ने किसी तरह कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और अपने बाबूजी को फोन करने लगी।
नेहा ने रो-रोकर अपने साथ हुई हरकत के बारे में अपने मॉ-बाप को बताया तो वे सन्न रह गये। अभी कल ही उन्होने अपने जिगर के टुकड़े को बड़े अरमानों के साथ बिदा किया था और अभी चौबीस घण्टे भी नहीं हुए यह सब हो गया। वे बदहवास से हो गये और जैसे थे वैसे ही दो-चार रिस्तेदारों को लेकर नेहा की ससुराल पहुंचे। मॉ-बाप की आवाज सुनकर ही नेहा ने दरवाजा खोला और अपनी मॉ की बाहों में चीखकर गिर पड़ी। बेटी की हालत देखकर उसके मॉ-बाप फफककर रो पड़े।
                      अब तक रामराज क घर में पास-पड़ोस की औरतों और लोगों का जमघट लग चुका था। सभी आश्चर्य और अफसोस जाहिर कर रहे थे।नेहा के मॉ-बाप को देखकर रामराज परिवार सहित घर से गायब हेा चुका था।
रामदीन रिस्तेदरों और पड़ोस के कुछ लोगों के साथ अपनी बेटी को लेकर सीधे थाने पहुंचकर और अपनी बेटी के साथ हुई घटना पूरे विस्तार से बताई और बाबा और रामराज को पूरे परिवार सहित सभी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी । पुलिस ने नेहा का मेडिकल चेकअप कराकरं , अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही का आश्वासन देकर उन्हें घर भेज दिया।
                 बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस रामराज को उसके पूरे परिवार सहित जेल भेज दिया और बाबा के आश्रम को सीज कर दिया लेकिन बाबा को पुलिस अभी तक नहीं पकड़ पायी है। सुना है कि वह बाबा भेष बदलकर किसी नेता की शरण में छिपा हुआ है।
                   प्रदेश के इस हाई प्रोफाइल हो चुके केस ने न्यूजपेपरों और टी0वी0 चैनलों की टीआरपी बढ़ा दी है। एक दिन इन्ही में से एक टी0वी0 चैनल मे बाबा पुलिस के समक्ष समर्पण करते हुए प्रकट हुआ और अपने भक्तों को सम्बोधित करते हुए बोला-‘‘यह मेरे विरोधियों की चाल है जिन्होने मुझ पर ऐसे घिनौने आरोप लगाये हैं लेकिन मुझे विश्वास है कि सच जल्दी ही लोगों के सामने आ जायेगा । ’’
कुछ महीनों बाद ही बाबा को जमानत मिल गई और वह पुनः अपने आश्रम में लोगों को , आस्था की अॅधेरी खोह में छिपे बैठे भगवान से मिलाने के सपने दिखाकर मौज करने लगा। अभी और न जाने कितनी लड़कियों को उस बाबा का ग्रास बनना पड़ेगा यह बाबा के भगवान को भी नहीं पता !



उत्तरी शकुननगर,
सिविल लाइन्स ,फतेहपुर,उ0प्र0
मो0 9336453835

सोमवार, 29 जुलाई 2013

जो मारे जाते- शिरोमणि महतो



जो मारे जाते



वे एक हाँक में

दौड़े आते सरपट गौओं की तरह

वे बलि-वेदी पर गर्दन डालकर

मुँह से उफ्फ भी नहीं करते

बिलकुल भेड़ों की तरह..



वे मंदिर और मस्जिद में

गुरूद्वारे और गिरिजाघर में

कोई फर्क नहीं समझते

उनके लिए वे देव-थान

आत्मा का स्नानघर होते !



वे उन देव थानों को

बारूदों से उड़ाना तो दूर

उस ओर पत्थर भी नहीं फेंक सकते

वे उन देव-थानों को

अपने हाथों से तोड़ना तो दूर

उस ओर ठेप्पा भी नहीं दिखा सकते



वे याद नहीं रखते

वेदों की ऋचाएँ/कुरान की आयतें

वे केवल याद रखते

अपने परिवार की कुछेक जरूरतें

वे दिन भर खटते-खपते हैं-

तन भर कपड़ा/सर पर छप्पर

और पेट भर भात के लिए....



वे कभी नहीं चाहते

सता की सेज पर सोना

क्योंकि वे नहीं जानते

राजनीति का व्याकरण

भाषा
का भेद

उच्चरणों का अनुतान



हाँ !

वे रोजी कमाते हैं

रोटी पकाते हैं

और चूल्हे में

रोटी सेंकते भी हैं

लेकिन वे नहीं जानते

आग से दूर रहकर

रोटी सेंकने की कला !






पता  : नावाडीह, बोकारो, झारखण्ड-829144

मोबाईल  : 9931552982

सोमवार, 8 जुलाई 2013

पंखुरी सिन्हा की कविताएं






इनकी रचनाएं अब तक हंस, वागर्थ, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वसुधा, साक्षात्कार, अभिव्यक्ति, जनज्वार, अक्षरौटी, युग ज़माना, बेला, समयमान, अनुनाद, सिताब दियारा, पहली बार, पुरवाई, लोकतंत्र दर्पण, सृजनगाथा, विचार मीमांसा, रविवार, सादर ब्लोगस्ते, हस्तक्षेप, दिव्य नर्मदा, शिक्षा धरम संस्कृति, उत्तर केसरी, इनफार्मेशन2 मीडिया, रंगकृति, हमज़बान, अपनी माटी, लिखो यहाँ वहां, बाबूजी का भारत मित्र आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
हिंदिनी, हाशिये पर, हहाकार, कलम की शान, समास, हिंदी चेतना, गुफ्तगू आदि ब्लौग्स वेब पत्रिकाओं में, कवितायेँ तथा कहानियां, प्रतीक्षित





प्रस्तुत है इनकी कुछ कविताएं -

1-आरोपित आवाज़ों की कहानी


सब नैसर्गिक नहीं है,

प्राकृतिक,

 चीखों में मेरी,

खुद से उपजी आवाजें नहीं हैं ये मेरी,

मेरी सोच नहीं है,

खुद खुद, नहीं पहुंची मैं,

इन ध्वनियों तक,

ध्वनियों तक, अपशब्दों तक,

पहले दिन की अफरातफरी में,

उस किसी और की मेरी थी,

उसके बाद की,

मेरी अपनी मेरी थी,

बताकर पहले दिन कि कमी थी,

कुछ आवाज़ में मेरी,

अंदाज़ में मेरी,

ज़िन्दगी जीने के आगाज़ में मेरी,

तर्क मेरा कटता था,

पर कैसे,

कसौटी पर उनके,

फिर का आलाप आया,

कि वह क्लास का अव्वल नंबर था,

फिर उस कैफेटेरिया की ऊपरी मंजिल से आती,

की सरगम में,

फिर हर कदम पर साथ चलते सेल फ़ोन की राजनीती में,

संगीत बिछाया गया,

जाल की तरह,

और डो रे मी फा सो ले टी की स्केल पर,

मेरी ज़िन्दगी संगीत बनकर,

छू मंतर हो गयी,

हवा हो गयी,
लिखी और तराशी जाने वाली औरों के द्वारा।








2-लैपटॉप की क्लिक



पकड़ते हुए एहसास का आखिरी कतरा,

महसूसने का सबकुछ,

सारी शिराएं, आपके होने का सबकुछ,

कि ठीक, ठीक क्या हुआ,

जब सुनी आपने बेहद भयानक खबर वह,

कि घटा है कहीं फिर भयानक हादसा कोई,

मारे गए हैं, निर्दोष, निहत्थे,

बेखबर लोग,

कहीं और,

जो कभी भी पास सकता है,

पर अभी नहीं,

अभी सिर्फ ख़बर है,

पढ़ी जा सकने वाली,

अपने लैपटॉप पर अब,

ये जानते कि मुमकिन है,

लोग, बेहद ताक़तवर लोग,

मुमकिन है, वही लोग,

कुछ वही लोग,

उनके लोग,

कुछ और लोग भी,

देख रहे हो,

आपको पढ़ते हुए खबर वह,

कितनी देर लगाई आपने,

पढने में ख़बर वह,

कितनी बार ऊपर नीचे की,

आपने रपट वह,

ठीक क्या हुआ,

उस दानवी वारदात को पढ़ते,

पढ़ते उस जघन्य कृत्य की बारीकियां,

लोमहर्षक बारीकियां,

जो डाल रहा है,

हम सबको खतरे में,

राहत ये कि ख़तरा कुछ दूर है।

इतना कसता जाता है,

शिकंजा किसी और का,

किसी नज़र रखने वाले का,

आपकी रोजमर्रे की ज़िन्दगी पर,

कि केवल राहत महसूस की आपने,

कुछ दूर तक,

खौफ उसके बाद,

खौफ तो कितना खौफ़?



संपर्क-39, मेरीवेल क्रेस्सेंट, कैलगरी, NE, AB,  कैनाडा, T2A2V5
ईमेल-sinhapankhuri412@yahoo.ca,

सेल फ़ोन- 403-921-3438