रविवार, 13 अप्रैल 2014

डॉ शैलेष गुप्त वीर की दो कविताएं



 

 











डॉ शैलेष गुप्त वीर 

 संक्षिप्त परिचय

     उत्तर प्रदेश में फतेहपुर के जमेनी नामक गांव में 18 जनवरी1981 को जन्में शैलेष गुप्तवीरकी राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा संकलनों में गीत, ग़ज़ल, कविता, क्षणिका, हाइकू, दोहे, लघुकथा,   आलेख, आलोचना एवं शोधपत्र आदि का  प्रकाशन हो चुका है।
    
इन्होंने प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विज्ञान में परास्नातक तथा पुरातत्व विज्ञान में पी-एच.डी भी किया है।  बी.एड., एम.जे.एम.सी.(पत्रकारिता एवं जनसंचार) डिप्लोमा इन रसियन लैंग्वेज़, डिप्लोमा इन उर्दू लैंग्वेज़, ओरियन्टेशन कोर्स इन म्यूजियोलॉजी एण्ड कन्ज़र्वेशन में दक्षता के साथ शिक्षा प्राप्त की है।
           
इन्होंन गुफ़्तगू (त्रैमासिक), इलाहाबाद, तख़्तोताज (मासिक), इलाहाबाद एवं  पुरवाई (वार्षिक)पत्रिकाओं में सक्रिय रहते हुए 2007 से अन्वेषी पत्रिका के संपादन के साथ- साथ  ‘उन पलों में’ (रागात्मक कविता संकलन)‘आर-पार’ (नयी कविताओं का संकलन)का संपादन भी किया है। 
     
इनको हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, रूसी, गुजराती, उर्दू तथा भोजपुरी भाषा में एकाधिकार प्राप्त है। आप सुधिजनों के बेबाक राय की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
 सम्प्रति  : अध्यक्ष-‘अन्वेषी’, साहित्य एवं संस्कृति की प्रगतिशील       संस्था, फतेहपुर।




डॉ शैलेष गुप्त वीर की दो कविताएं
 



सभ्य समाज


उसके लिये हर मर्द
धूर्त ] स्वार्थी] ज़ालिम
और दुष्ट है
बच्चे चिल्लाते हैं-
पगली पगली
और हो जाते हैं दफ़ा
मोहल्ले में प्रत्येक व्यक्ति वाक़िफ़ है
इस सच्चाई से कि सात साल पहले
दो पैर वालों का एक बर्बर झुंड
टूट पड़ा था उस पर
तबाह हो गयी थी ज़िंदगी उसकी
और माननीय पति परमेश्वर
ब्याह लाये थे दूसरी
सभ्य महिलायें कहती हैं-
इसके साथ जो हुआ ठीक हुआ
आख़िर चाल-चलन की थी ही ऐसी
कुछ नवयुवक/दबी ज़ुबान से कहते हैं-
पुंश्चली थी भी/बला की ख़ूबसूरत
ऐसे में बलात्कार नहीं
तो और होगा भी क्या!
पचपन साल के बुजुर्ग बुद्धिजीवी
आह भरकर
बच्चों को मना करते हैं
इसकी तरफ़ मत देखना
पति अकाल मौत मरा है
डायन है डायन
ससुरी को मौत भी नहीं डसती!
अब तो उसे भी
आभास हो चुका है
कि वह कुलटा है
सभ्य समाज पर बोझ है
तभी कल देर रात
अपने तन पर
उड़ेल लिया था मिट्टी का तेल
दुर्भाग्य से बच निकली
बस झुलस कर ही रह गयी।
सुबह मोहल्ले में चर्चा थी
ज़रूर कोई दानवी प्रकोप है
यह डायन है चुड़ैल है
भला कोई आग से भी बचता है
दोपहर पंचायत ने भी
अपना फ़ैसला सुना दिया
अब उसके जिस्म के टुकड़े-टुकड़े होंगे
सभी के समक्ष पवित्र अग्नि में
दाह कर दिये जायेंगे
मांसल टुकड़े
पण्डित जी मंत्रों से शुद्धि करेंगे
ओझा और फ़क़ीर कील देंगे
पूरा का पूरा मोहल्ला
ताकि कभी भी प्रवेश कर सके
वह दुष्टात्मा!
तैयारी ज़ोरों से चल रही है।


बेशक मेरा गाँव भी


अब मुझे नहीं अच्छा लगता
अपने गाँव जाना
क्योंकि वहाँ अब गाँव जैसा
कुछ भी नहीं रहा
मेरा गाँव भी काफ़ी कुछ
शहरों-सा हो गया है
वहाँ भी होती हैं-चोरियाँ
राहज़नी और हत्यायें।
मेरे गाँव के मन्दिर के गर्भगृह से भी
चोरी हो जाते हैं अष्टधातु के भगवान।
मेरे गाँव में भी सरेआम
घूमते हैं मनचले
और घूरते हैं
हर आने-जाने वाले को
कसते हैं जीभर फ़बतियाँ।
फ़िलहाल ये सब तो आम बातें हैं
मेरा गाँव अभी भी
दिल्ली और मंुबई जैसे महानगरों से
बहुत पीछे है
बेशक  वहाँ भी होने लगे हैं बलात्कार
पर अभी भी नहीं सुनी जा सकी है
मुंबई जैसे दंगों की चीख-चीत्कार
वहाँ अभी बहुत कुछ होना बाक़ी है
जैसे विमान हाईजैक
किसी बड़े शख़्स की हत्या
आईएसआई एजेंटों का आवागमन
तथापि मैं दावे के साथ कह सकता हंू
वहाँ विकास कार्य जारी है
शीघ्र अतिशीघ्र
मेरा गाँव भी छू सकेगा
महानगरों की ऊँचाइयाँ।
निःसन्देह मेरे गाँव में भी वह दिन आयेगा
जब होगा किसी स्विस राजनयिक का रेप
और रेपिस्ट नहीं पकड़ा जा सकेगा।
वह दिन ज़रूर आयेगा
जब मेरे गाँव में भी पैदा होगा
कोई चार्ल्स शोभराज या नटवरलाल
और गौरवान्वित करेगा अपने देश को!
विकास कार्य जारी है तीव्र गति से
तथापि अब मुझे नहीं अच्छा लगता
अपने गाँव जाना।
सम्पर्क&        24/18, राधानगर, फतेहपुर (.प्र.) - 212601
                    
वार्तासूत्र - 9839942005, 8574006355
              Ãesy& doctor_shailesh@rediffmail.com


मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

उमा शंकर मिश्र की कहानी




     
 सरहद की सीमा


सरहद की कोई सीमा हम लोगों के लिए नहीं होती है। पक्षियों का झुंड सीमाओं पर उड़ रहा था।कल ही तो चांदमारी में अनेक पक्षी घायल थे। कुछ मर भी गये थे। लेकिन आज फिर वही अठखेलियां , वही उत्साह , वही उमंग , वही उल्लास कोई फर्क इन पक्षियों पर नहीं पड़ा था। कोई वीजा नहीं , कोई पासपोर्ट नहीं , कोई आदेश-निर्देश इन पंक्षियों पर लागू नहीं होता है।इनकी हर उडा़न इंसान को नयी दिशा देती है ।आशाओं की दुनियाँ में ये केवल उड़कर ही इंसान को शिक्षा देते हैं कि उड़ान भरना मेरी नियति है, मंजिलें नहीं और तुम लोगों को बहुत कुछ सीख लेनी है। प्रकृति से इंसान बहुत कुछ सीख सकता है , लेकिन किसको क्या पड़ी है?कौन किसको पूछता है? कंक्रीट से पीछे हुए ,ये जंगल ,ये चकाचौंध, ये रंग-बिरंगी दुनिया का भौतिकतावाद ये राजनीति ये ,कूटनीति ये ,पाश्चात्य संस्कृति की नकल से परिपूर्ण आधुनिक समाज भी बहुत कुछ कहते हैं।


        आज शंकर उदास था। हताश था। निराश था। लेकिन शंकर बीमार नहीं था। चांदमारी में मारे गये पक्षियों को देखकर वह दुःखी हो गया था। आज सीमाओं पर ड्यूटी कर रहे बड़े अधिकारियों से मिलने का मन बना रहा था। डर उससे कोसों दूर था। बहुत करेगें बात नहीं मानेगें और मुझे जेल में डाल देंगे। सीमाओं पर की गई बैरीकेटिंग पर भी कुछ पंछी बैठकर चहचहा रहे थे। उन्हें क्या पता कि दोनों देशों के राजनीति करने वाले आज तक अपनी राजनीति से कुछ हासिल नहीं कर पाये आतंकवाद ज्यों का त्यों रहा। कुछ वृद्धि अवश्य हो गयी थी।


       सुबह शंकर की पत्नि रंजना ने खेत में ही कलेवा ले जाकर दे दिया । सुनो तुम हमेशा दुःखी रहते हो इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला है । ये सेना के अधिकारी हैं अजीबो-गरीब होते हैं। कहीं बात का बतंगण न बना दे। यदि तुम्हें कुछ हो गया तो मेरी कृति का क्या होगा।


       शंकर ध्यान नहीं दिया। काम करने वाले परिणाम की परवाह नहीं करते हैं । सेना के मेजर जनरल से मिलने क बात सुनकर उनका सचिव कुछ अजीब-सा महसूस किये। एक धोती-कुर्ता पहने किसान की क्या जरूरत सेना के अधिकारी से।शंकर को सीमाओं पर सेना के अधिकारी ने देखा था। अतः मिलने की कोई विशेष औपचारिकता नहीं की गयी। कार्यालय में उसे अन्दर बुला लिया गया। बोलो- अधिकारी ने कहा । हम भी तुम्हारे जैसे एक किसान के ही बेटे हैं ।अपनत्व का प्रदर्शन करते देख शंकर की आँखे छलक आयी। साहब चांदमारी के रिहर्सल में पक्षियां प्रतिदिन घायल होते हैं या मर जाते हैं। इन्हें रोकिये साहब हाथ जोड़ता शंकर फरियाद किया।

       देखो शंकर मुझे भी मालूम है कि हर चहक के पीछे एक खुशी होती है।इंसान ने चहकना इन्हीं से सीखा है । हर उड़ान के पीछे एक आदर्श होता है। इंसान ने आदर्शों और उसूलों के पंख लगाकर उड़ना इन्हीं से अपनाया है। झुंड में रहकर एकता का प्रदर्शन और साथ साथ उड़कर समानता का संदेश भी इसमें छिपा है। नियति समय सूर्यास्त से पहले अपने घोंसले या आवास यानी वृक्षों पर आ कर बैठ जाना ये बताता है कि अनावश्यक रात्रि में न घुमा जाय। रात्रि में इनकी खामोशी भी पूरी रात्रि इंसान को शान्त होकर आराम करना ध्वनि प्रदूषण से रहित होकर जीवन बीताना भी इन्हीं से लिया गया है।

      हर काम हर साहित्य में  इसलिए इन्हें सम्मानित स्थान दिया गया है। मुसिबतों में भीड इन्हीं प्रणियों ने सीता जैसी असहाय माता का साथ निभाया है।तुम जाओ शंकर आज से चांदमारी और रिहर्सल जमीन पर रोक दिया जायेगा। घोसलों में पानी भरकर ये प्रयास किया जा सकता है।अब बन्दूकों की नाल ऊपर नहीं की जायेगी।ये पक्षी तो मेरे दिल में ही नहीं आत्मा में बसते हैं।शंकर जब कार्यालय से बाहर निकला तो कुछ पक्षी मडंराते हुए उसके ऊपर से गुजरे । सेना के अधिकारी और शंकर की मुस्कान में कुछ अर्थ था। और आंसुओं में एक मर्म भरी कहानी। दोनों के हाथ उपर उठे हुए थे। अभिवादन के लिए नहीं पक्षियों के लिए।



       


सम्पर्क उमा शंकर मिश्र
          ऑडिटर श्रम मन्त्रालय
          भारत सरकार
          वाराणसी मोबा0-8005303398