सोमवार, 27 जून 2016

युवा कवि शिरोमणि महतो की कविताएं



     समकालीन रचनाकारों में प्रमुख स्थान रखने वाले शिरोमणि महतो  की कविताएं सरल शब्दों में बड़ा वितान रचती हैं कवि अपने लोक से कितना जुड़ा है । यह तो इन कविताओं को पढने के बाद ही जान पाएंगे।
युवा कवि  शिरोमणि महतो की कविताएं
नदी

मेरी माँ मेरे सर पर
हाथ रखती है
और एक नदी
छलछलाने लगती
-मेरे ऊपर

मेरी बहन कलाई में
राखी बांधती
और एक नदी
उडेल देती सारा जल
-मुझ पर

मेरी पत्नी होठों पर
एक चुम्बन लेती
और एक नदी
हिलोरे मारने लगती
-मेरे भीतर

माँ बहन और पत्नी
एक स्त्री के कई रूप
और एक नदी के
कई प्रतिरूप !

कोदो भात

कोदो गोंदली मंहुआ
अब देखने को नहीं मिलते
उखड़ गई इन फसलों की खेती
जैसे हम उखड़ गये अपनी जड़ों से !

आज कोदो का भात दुर्लभ है
लेकिन कहावत अभी जिन्दा है-
हाम तो बाप पके कोदो नायं खाईल हियो
पहले कोदो चावल से भी ज्यादा भोज्य था
तभी तो बनी थी-यह कहावत

धीरे-धीरे चावल भी छूटता जा रहा
और उसकी जगह लेता जा रहा
अब चौमीन-चाईनीज फूड....

जैसे-जैसे कोदा से चावल
और चावल से चाईनीज फूड
वैसे-वैसे भारत से इंडिया
होता जा रहा अपना देश....!
पता  : नावाडीह, बोकारो, झारखण्ड-829144  मोबाईल  : 9931552982

गुरुवार, 16 जून 2016

बातों का अफवाहें बनना ठीक नहीं- प्रेम नंदन



जन्म - 25 दिसम्बर 1980, फरीदपुर, हुसेनगंज, फतेहपुर (उ0प्र0) |
शिक्षा - एम0ए0(हिन्दी), बी0एड0। पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
परिचय - लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। तीन-चार   वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा लगभग इतने ही वर्षों तक इधर-उधर ‘भटकने’ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन|
प्रकाशन- कवितायें, कहानियां एवं  लघुकथायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्लॉगों में प्रकाशित।
1 -  अफवाहें बनती बातें

सच यही है
कि बातें वहीं से शुरू हुईं
जहाँ से होनी चाहिए थीं
लेकिन खत्म हुईं वहाँ
जहाँ नहीं होनी चाहिए थीं ।

बातों के शुरू और खत्म होने के बीच
तमाम नदियाँ, पहाड़, जंगल और रेगिस्तान आए
और अपनी उॅचाइयाँ , गहराइयाँ , हरापन और
नंगापन थोपते गए ।

इन सबका संतुलन न साध पाने वाली बातें
ठीक तरह से शुरू होते हुए भी
सही जगह नहीं पहुँच पाती-
अफवाहें बन जाती हैं ।

ऐसे विकराल समय में
बातों का अफवाहें बनना ठीक नहीं!


2-मदारी

जब भी लगती है उन्हें प्यास
वे लिखते हैं
खुरदुरे कागज के चिकने चेहरे पर
कुछ बूँद पानी
और धधकने लगती है आग !

इसी आग की आँच से
बुझा लेते हैं वे
अपनी हर तरह की प्यास !

मदारियों के
आधुनिक संस्करण हैं वे
आग और पानी को
कागज में बाँधकर
जेब में रखना
जानते हैं वे !

संपर्क – उत्तरी शकुन नगर, सिविल लाइन्स, फतेहपुर, उ०प्र०-212601,
दूरभाष– 09336453835
ईमेल - premnandan10@gmail.com
ब्लॉग – aakharbaadi.blogspot.in

रविवार, 5 जून 2016

‘ शिक्षातरु अभियान ’ - आरसी चौहान




   विश्व पर्यावरण दिवस पर पोस्ट कर रहा हूं सर्वनाम में प्रकाशित एक लेख का कुछ अंश। पठन पाठन के साथ वृक्षारोपड़ कार्यक्रम की कुछ झलकियां एवं आभार उन समस्त  कर्मठ  साथियों का जिन्होंने शिक्षातरु अभियान में निरंतर सहयोग दिया जिनमें सर्वश्री प्रदीप मालवा ,  सुनील कुमार ,  मुकेश डडवाल ,  सुनील कण्डवाल ,  सतीश कुमार ,  जीतेंद्र कोहली ,  मनवीर भारती ,  गणेश लखेड़ा जमुनादास पाठक एवं स्कूल के समस्त छात्र छात्राएं ।
उत्तराखण्ड के महत्वपूर्ण जनान्दोलन




चिपको आन्दोलन: दुनिया भर मे पर्यावरण और वन संरक्षण की  अलख जगाने वाले समाज सेवियों चण्डी प्रसाद भट्ट एवं आलम सिंह बिष्ट के कार्यों को सफल बनाने में स्वयं पेड़ों पर चिपक कर इस पर्यावरण चेतना के महान संघर्ष चिपको की जननी गौरा देवी को कौन भुला सकता है।बेजुबान वृक्षों की रक्षा में वृक्ष खोरों के खिलाफ गौरा देवी व उसकी दर्जनों सहेलियों की गर्जना पहाड़ी वादियों से निकलकर दुनिया के कोने-कोने तक प्रतिध्वनित हुई।



        भाले कुल्हाडे़ चमकेंगेहम पेड़ों पर चिपकेंगे ।



        पेड़ों पर हथियार उठेंगे, हम भी उनके साथ कटेंगे।



  चमोली जनपद के रैणी गाँव में 26 मार्च 1974 को कुल्हाड़ियों तथा बदूंकों से लैस वन ठेकेदार के मजदूरों वन कर्मियों व दबंगों को पीछे हटने को मजबूर कर दिया।जब गौरा देवी व उसकी सहेलियों ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना पेड़ों से चिपक कर हजारों पेड़ों की रक्षा की। चिपको आंदोलन का ही असर था कि सन् 1980 में भारत सरकार को वन संरक्षण अधिनियमबनाना पड़ा।गौरा देवी के इस अभियान को पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ने विश्व में एक नई पहचान दिलाई।




मैती आन्दोलन: पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व में चर्चित चिपको आन्दोलन के पश्चात मैती आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। इसके मुखर स्वर अब भारत के अन्य राज्यों सहित अमेरिकाकनाडा,  चीनथाईलैण्ड व नेपाल में भी सुनाई पड़ने लगे हैं। कल्याण सिंह रावत इसी मैती आन्दोलन के जनक हैं ।सन 19950 में पर्यावरण संरक्षण हेतु भावनात्मक आन्दोलन मैती की शुरूआत करने के बाद अब तक लाखों पेड़ लगाए जा चुके हैं।हर शादी की याद में दुल्हा तथा दुल्हन मिल कर पेड़ लगाते हैं। उत्तराखण्ड में यह आन्दोलन संस्कार का रूप ले चुका है।





रक्षा सूत्र आन्दोलन: टिहरी गढ़वाल के भिलंगना क्षेत्र से शुरू हुआ यह आन्दोलन वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाधंकर उसकी रक्षा का संकल्प लिया जाता है।यह अपने आप में एक अलग तरह का आन्दोलन है। इस आन्दोलन का सूत्रपात 1994 ई0 में सुरेश भाई ने किया । दरअसल इसके पीछे एक मुख्य वजह एक हजार मीटर की ऊँचाई  से वृक्षों के कटान पर लगे प्रतिबंध के हट जाने से संबंधित रही। इस आन्दोलन की सफलता जंगल में छपान के बावजूद इन पेड़ों का खड़ा होना है।




उत्तराखण्ड प्रकृति से बहुत गहरे रूप में जुड़ा है। यहां के लोगों में मान-मर्यादा , शिष्टाचार,  आचार -विचार एवं आतिथ्य सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी है। इनकी ईमानदार छवि से उत्तराखण्ड ने अपनी अलग पहचान  बनायी है।ये लोग प्रकृति के इतने निकट हैं कि इनसे मानवीय जैसे रिश्ते स्थापित कर लिये हैं।नन्दा देवी को अपनी बेटी से भी अधिक प्यार व सम्मान देना इसका जीवंत उदाहरण है।

    पेड़ या जंगल इनके जीवन के अभिन्न अंग हैं।पेड़ों को वृक्ष माफियाओं से बचाने के लिये अपने प्राणों तक की परवाह नहीं करते ।इसी तरह नदियों की अविरल धारा को बनाये रखने के लिये भी इनके जनान्दोलन जग जाहिर हैं।चोरी -डकैती व छिनैती जैसी घटनाएं पहाड़ों में कम ही घटित होती हैं।अब कुछ असामाजिक तत्त्वों द्वारा इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति की जाने लगी है।


   यहां के लोग अपने जीवन मूल्य को बचाये रखने की भरसक कोशिक करने में लगे हैं।इन लोगों में आज भी सच्चाई, ईमानदारी,वफादारी व माता-पिता के प्रति आदर-सत्कार में कोई कमी नहीं आयी है।ऐसे चरित्रवान लोगों से ही समाज व देश का विकास सम्भव हो पायेगा।एक सुदृढ़,सभ्य और स्वस्थ समाज की रचना के लिये इनसे हमें सीख लेनी चाहिए।











संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)

राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121

मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

शनिवार, 28 मई 2016

कहानी : बदबू - सुशांत सुप्रिय




   
    श्री सुशांत सुप्रिय हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेज़ी में लिखते हैं. हत्यारे , हे राम , दलदल  इनके कुछ कथा संग्रह हैं, अयोध्या से गुजरात तक और इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं  इनके काव्य संकलन. इनकी कई कहानियाँ और कविताएँ विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं. अनेक कहानियाँ  कई राज्यों के स्कूलों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं, कविताएँ पूणे विश्व-विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल हैं और विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी इनकी कहानियों पर शोध कर रहे हैं. भाषा विभाग ( पंजाब ) तथा प्रकाशन विभाग ( भारत सरकार ) द्वारा इनकी रचनाएँ पुरस्कृत की गई हैं. कमलेश्वर-कथाबिंब कहानी प्रतियोगिता ( मुंबई ) में लगातार दो वर्ष प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किये गए.
कहानी  : बदबू - सुशांत सुप्रिय 

            रेल-यात्राओं का भी अपना ही मज़ा है । एक ही डिब्बे में पूरे भारत की सैर हो जाती है । ' आमार सोनार बांग्ला ' वाले बाबू मोशाय से लेकर ' बल्ले-बल्ले ' वाले सरदारजी तक , ' वणक्कम् ' वाले तमिल भाई से लेकर ' केम छो ' वाले गुजराती सेठ तक -- सभी से रेलगाड़ी के उसी डिब्बे में मुलाक़ात हो जाती है । यहाँ तरह-तरह के लोग मिल जाते हैं । विचित्र क़िस्म के अनुभव हो जाते हैं ।

            पिछली सर्दियों में मेरे साथ ऐसा ही हुआ । मैं और मेरे एक परिचित विमल किसी काम के सिलसिले में राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली से रायपुर जा रहे थे । हमारे सामने वाली सीट पर फ़्रेंचकट दाढ़ीवाला एक व्यक्ति अपनी पत्नी और तीन साल के बच्चे के साथ यात्रा कर रहा था । परस्पर अभिवादन हुआ । शिष्टाचारवश मौसम से जुड़ी कुछ बातें हुईं । उसके अनुरोध पर हमने अपनी नीचे वाली बर्थ उसे दे दी और हम दोनो ऊपर वाली बर्थ पर चले आए ।

            मैं अख़बार के पन्ने पलट रहा था । तभी मेरी निगाह नीचे बैठे उस व्यक्ति पर पड़ी । वह बार-बार हवा को सूँघने की कोशिश करता , फिर नाक-भौंह सिकोड़ता ।
उसके हाव-भाव से साफ़ था कि उसे किसी चीज़ की बदबू आ रही थी । वह रह-रह कर अपने दाहिने हाथ से अपनी नाक के इर्द-गिर्द की हवा को उड़ाता । विमल भी यह सारा तमाशा देख रहा था । आख़िर उससे रहा नहीं गया । वह पूछ बैठा -- " क्या हुआ , भाई साहब ? "

            " बड़ी बदबू आ रही है । " फ़्रेंचकट दाढ़ीवाले उस व्यक्ति ने बड़े चिड़चिड़े स्वर में कहा ।
            विमल ने मेरी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा । मुझे भी कुछ समझ नहीं आया ।
            मैंने जीवन में कभी यह दावा नहीं किया कि मेरी नाक कुत्ते जैसी है । मुझे और विमल -- हम दोनो को ही कोई दुर्गन्ध नहीं सता रही थी । इसलिए , उस व्यक्ति के हाव-भाव हमें कुछ अजीब से लगे । मैं फिर अख़बार पढ़ने में व्यस्त हो गया । विमल ने भी अख़बार का एक पन्ना उठा लिया ।
            पाँच-सात मिनट बीते होंगे कि मेरी निगाह नीचे गई । नीचे बैठा व्यक्ति अब बहुत उद्विग्न नज़र आ रहा था । वह चारो ओर टोही निगाहों से देख रहा था । जैसे बदबू के स्रोत का पता लगते ही वह कोई क्रांतिकारी क़दम उठा लेगा । रह-रहकर उसका हाथ अपनी नाक पर चला जाता । आख़िर उसने अपनी पत्नी से कुछ कहा । पत्नी ने बैग में से ' रूम-फ़्रेश्नर ' जैसा कुछ निकाला और हवा में चारो ओर उसे' स्प्रे ' कर दिया । मैंने विमल को आँख मारी । वह मुस्करा दिया । किनारेवाली बर्थ पर बैठे एक सरदारजी भी यह सारा तमाशा हैरानी से देख रहे थे

            चलो , अब शायद इस पीड़ित व्यक्ति को कुछ आराम मिलेगा -- मैंने मन-ही-मन सोचा ।
            पर थोड़ी देर बाद क्या देखता हूँ कि फ़्रेंचकट दाढ़ी वाला वह उद्विग्न व्यक्ति
वही पुरानी हरकतें कर रहा है । तभी उसने अपनी पत्नी के कान में कुछ कहा । पत्नी परेशान-सी उठी और हमें सम्बोधित करके कहने लगी , " भाई साहब , यह जूता किसका है ? इसी में से बदबू आ रही है । "

             जूता विमल का था । वह उत्तेजित स्वर में बोला , " यहाँ पाँच-छह जोड़ी जूते पड़े हैं । आप यह कैसे कह सकती हैं कि इसी जूते में से बदबू आ रही है । वैसे भी , मेरा जूता और मेरी जुराबें , दोनों नई हैं और साफ़-सुथरी हैं । "

             इस पर उस व्यक्ति की पत्नी कहने लगी , " भाई साहब , बुरा मत मानिएगा । इन्हें बदबू सहन नहीं होती । उलटी आने लगती है । आप से गुज़ारिश करती हूँ , आप अपने जूते पालिथीन में डाल दीजिए । बड़ी मेहरबानी होगी । "
           विमल ग़ुस्से और असमंजस में था । तब मैंने स्थिति को सँभाला ," देखिए ,
हमें तो कोई बदबू नहीं आ रही । पर आप जब इतनी ज़िद कर रही हैं तो यही सही ।"

            बड़े बेमन से विमल ने नीचे उतर कर अपने जूते पालिथीन में डाल दिए ।
            मैंने सोचा --  चलो , अब बात यहीं ख़त्म हो जाएगी । पर थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति उठा और मुझसे कहने लगा , " भाई साहब , मुझे नीचे अब भी बहुत बदबू आ रही है । आप नीचे आ जाइए । मैं वापस ऊपरवाली बर्थ पर जाना चाहता हूँ । "

            अब मुझसे नहीं रहा गया । मैंने कहा , " क्या आप पहली बार रेल-यात्रा कर रहे हैं ? भाई साहब , आप अपने घर के ड्राइंग-रूम में नहीं बैठे हैं । यात्रा में कई तरह की गंध आती ही हैं । टॉयलेट के पास वाली बर्थ मिल जाए तो वहाँ की दुर्गन्ध आती है । गाड़ी जब शराब बनाने वाली फ़ैक्ट्री के बगल से गुज़रती है तो वहाँ की गंध आती है । यात्रा में सब सहने की आदत डालनी पड़ती है । "

            विमल ने भी धीरे से कहा , " इंसान को अगर कुत्ते की नाक मिल जाए तो बड़ी मुश्किल होती है ! "
            पर उस व्यक्ति ने शायद विमल की बात नहीं सुनी । वह अड़ा रहा कि मैं नीचे आ जाऊँ और वह ऊपर वाली बर्थ पर ही जाएगा ।
            मैंने बात को और बढ़ाना ठीक नहीं समझा । इसलिए मैंने ऊपर वाली बर्थ
उसके लिए ख़ाली कर दी । वह ऊपर चला गया ।

            थोड़ी देर बाद जब उस व्यक्ति की पत्नी अपने बड़े बैग में से कुछ निकाल रही थी तो वह अचानक चीख़कर पीछे हट गई ।
            सब उसकी ओर देखने लगे ।
            " क्या हुआ ? " ऊपर वाली बर्थ से उस व्यक्ति ने पूछा ।
            " बैग में मरी हुई छिपकली है ।" उसकी पत्नी ने जवाब दिया ।
            यह सुनकर विमल ने मुझे आँख मारी । मैं मुस्करा दिया ।
             वह व्यक्ति खिसियाना-सा मुँह लिए नीचे उतरा ।

             " भाई साहब , बदबू का राज अब पता चला ! " सरदारजी ने उसे छेड़ा । वह और झेंप गया ।
              ख़ैर । उस व्यक्ति ने मरी हुई छिपकली को खिडकी से बाहर फेंका । फिर वह बैग में से सारा सामान निकाल कर उसे डिब्बे के अंत में ले जा कर झाड़ आया ।
हम सबने चैन की साँस ली । चलो , मुसीबत ख़त्म हुई -- मैंने सोचा ।
              पैंट्री-कार से खाना आ गया था । सबने खाना खाया । इधर-उधर की बातें हुईं । फिर सब सोने की तैयारी करने लगे ।
              तभी मेरी निगाह उस आदमी पर पड़ी । उद्विग्नता की रेखाएँ उसके चेहरे पर लौट आई थीं । वह फिर से हवा को सूँघने की कोशिश कर रहा था ।
              " मुझे अब भी बदबू आ रही है ... ", आख़िर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उसने कहा ।
              " हे भगवान ! " मेरे मुँह से निकला ।
              यह सुनकर विमल ने मोर्चा सँभाला , " भाई साहब , मेरी बात ध्यान से सुनिए । बताइए , हम किस युग में जी रहे हैं ? यह कैसा समय है ? हम कैसे लोग
 हैं ? "
               " क्या मतलब ? " वह आदमी कुछ समझ नहीं पाया ।

               " देखिए , हम सब एक बदबूदार युग में जी रहे हैं । यह समय बदबूदार है । हम लोग बदबूदार हैं । यहाँ नेता भ्रष्ट हैं , वे बदबूदार हैं । अभिनेता अंडरवर्ल्ड से मिले हैं , वे बदबूदार हैं । अफ़सर घूसखोर हैं , वे बदबूदार हैं । दुकानदार मिलावट करते हैं , वे बदबूदार हैं । हम और आप झूठ बोलते हैं , दूसरों का हक़ मारते हैं , अनैतिक काम करते हैं -- हम सभी बदबूदार हैं । जब यह सारा युग बदबूदार है , यह समय बदबूदार है , यह समाज बदबूदार है , हम लोग बदबूदार हैं , ऐसे में यदि आपको अब भी बदबू आ रही है तो यह स्वाभाविक है । आख़िर इस डिब्बे में हम बदबूदार लोग ही तो बैठे हैं ...। "

                         ------------०------------

   सुशांत सुप्रिय
  A-5001 ,गौड़ ग्रीन सिटी ,
  वैभव खंड ,इंदिरापुरम ,
  ग़ाज़ियाबाद - 201014 ( उ. प्र . )
   
मो: 08512070086  ई-मेल: sushant1968@gmail.com
                      

सोमवार, 16 मई 2016

कहानी : चाटूकारिता की बल्ले बल्ले -जब्बार हुसैन






            बहुत समय पहले की बात है एक राजा  था । उसकी कीर्ति बहुत दूर दूर तक फैली हुई थी। उसने आसपास के सभी राजाओं को युद्ध में हराकर अपने अधीन कर लिया था।उसकी ताकत के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे। लेकिन उसकी एक बुरी आदत भी थी कि वह हमेशा  अपने चाटूकारों से घिरा रहता था।राजा अपना जो भी काम करता वो चाटूकारों के कहने पर ही करता था।चाटूकार जो भी चाहते राज्य में वही होता था।और एक मजे की बात थी कि सभी चाटूकार एक नम्बर के कामचोर और डरपोक  थे ।और जो लोग महल में कार्य करते थे चाटूकार उनके काम को राजा के सामने कुछ इस तरह से पेश करते कि बाकी लोगों के काम का श्रेय भी उन्हीं को मिलता।राजा उन पर बहुत विश्वास करता था।लेकिन वे चारो चाटूकार राजा की इसी बात को फायदा उठाते थे।

             इस बात से महल के सभी कर्मचारी बहुत परेशान थे।और चाटूकारों की दुकान बड़े मजे से चल रही थी।कभी कोई दरबारी हिम्मत करके राजा से उनके बार में कोई बात कहने की हिम्मत जुटाता तो राजा उसे ही कठोर दंड देकर चुप करा देता। इस बात से सभी दरबारी भयभीत थे । जब भी कभी जनता अपनी परेशानी लेकर राजा के सामने जाती तो राजा के चाटूकार उन्हें राजा से मिलने भी नहीं देते थे पूरे राज्य में उन चाटूकारों की वजह से राजा की थू थू हो रही थी और अब जनता को राजा के ऊपर से भरोसा उठ चुका था।कोई भी राज्य का व्यक्ति राजा के पास अपनी समस्या लेकर नहीं जाता था । सभी इस बात को समझ चुके थे कि राजा के पास अपनी समस्या ले जाना बेकार है क्योकि हमारी समस्या का हल तो होगा नहीं ।

             धीरे धीरे ये बात दूसरे राज्यों तक भी फैल गयी और दूसरे राज्य के लोग इसी बात के इन्तजार में थे और वे सही मौके की तलाश में रहने लगे जैसे ही उन्हें सही मौका मिला सभी राजाओं ने मिलकर उस राज्य के ऊपर आक्रमण कर दिया। आक्रमण की खबर मिलते ही कुछ राजा के वफादार चाटूकारों के पास आए और तीनों चाटूकारों को इस बात की सूचना दी कि पडोसी देश की सेना ने हमला कर दिया है और दुशमन सेना शहर के नजदीक पहुंच चुकी हैं। लेकिन चाटूकारों ने इस बात को राजा से छिपा लिया और राजा को अपनी बातांे में फंसा कर गुमराह कर दिया और राजा आक्रमण का जवाब देने की बजाए चाटूकारों के साथ शिकार खेलने निकल पड़ा।


                   ऐसे वक्त पर राजा का चाटूकारों के साथ शिकार पर जाना पूरी सेना का मनोबल टूट गया।राजा को दुशमन सेना की गतिविधियों का कुछ पता नहीं चल पाया और दुशमन सेना राजा के शहर में घुस गयी । प्रजा द्वारा राजा को इसकी सूचना नहीं दी गयी । क्योंकि प्रजा पहले ही राजा से परेशान हो चुकी थी। राजा के शिकार से वापस आने पर इस बात का पता चला। अब चाटूकार भी इस बात को समझ चुके थे कि अब यदि हम युद्ध लड़ते हैं तो हम सभी मारे जायेंगे । इसलिए उन्होंने इस बात को भी राजा से छुपाना ही उचित समझा। धीरे धीरे सेना महल के द्वार पर आ गई। सभी राजा के चमचे और चाटूकार थर थर कांप रहे थे। वे सभी समझ चुके थे कि अब हमारा मरना तय है। तभी सेनापति ने उन चाटूकारों से बच कर सीधे राजा से मिलने का निश्चय किया और वह कामयाब हो गए। उसने राजा से कहा हे राजन हम चारों तरफ से घिर चुके हैं। हमारे बच निकलने के सभी रास्ते दुशमन सेना द्वारा बंद कर दिए गए हैं। हमें क्या करना चाहिए।

            राजा ये सुनकर सेनापति पर बहुत गुस्सा हुआ। उसने कहा इस बात की खबर हमें पहले क्यों नहीं दी गई । सेनापति ने कहा महाराज इस बात की खबर आप तक कई बार पहुचानें की कोशिश की गई लेकिन हर बार आप के सबसे ज्यादा करीब रहने वाले सबसे ज्यादा कामचोर और कमजोर लोगों की जो मंडली आपने अपने चारों तरफ खड़ी की हुई है । वह हमेशा हमें ये कह कर टाल देते थे कि हम इस बात को राजा से कह देगें और हमें बाहर से ही वापस लौटना पड़ता था। फिर राजा ने पूछा कि हमारे गुप्तचरों ने भी हमें इस बात की सूचना क्यों नहीं दी सेनापति ने कहा महाराज गुप्तचरों ने भी कई बार आपसे मिलने की कोशिश की लेकिन हर बार की तरह उन्हें भी लौटा दिया गया। उन्हें युद्ध के नाम से भी डर लगता था। इसलिए उन्होंने इस बात को आपसे से हमेशा छुपा के रखा।

                राजा को अब अपने उपर पछतावा हो रहा था । राजा को अपनी गलती समझ में आ चुकी थी। राजा ने सोचा सबसे पहले में इस सभी चाटूकारों को ही मार डालता हूँ लेकिन पूरा महल ढूंढने पर भी राजा को अपने चारों  चाटूकारों का कहीं पता नहीं चला। वे भाग चुके थे।राजा के सामने अब कोई रास्ता नहीं था। और राजा ने अपनी हार स्वीकार करके आत्मसमर्पण कर दिया । राजा गिरफतार हो चुका था। राजा को दरबार में पेश किया गया।राजा से उसकी आखिरी ख्वाइश पूछी गई राजा ने कहा कि मैं अपने चारो दरबारियों को अपनी आंखों के सामने फांसी पर लटकता हुआ देखना चाहता हूं।राजा की आखिरी ख्वाइश पूरी की गई और चाटूकारों को फांसी पर लटका दिया गया। और राजा को अपनी बाकी की पूरी जिन्दगी जेल की काल कोठरी में बितानी पड़ी। और इस तरह कुछ कामचोर और डरपोक चाटूकारों की वजह से एक राजा का अन्त हुआ।


संपर्क-
रा0 इ0 का0 पौड़ीखाल
टि00 उत्तराखण्ड
मोबा0-9897597707

शनिवार, 7 मई 2016

अशोक बाबू माहौर की कविता : रवि आ



     मध्य प्रदेश के मुरैना जिला में 10 जनवरी 1985 को जन्में अशोक बाबू माहौर का इधर रचनाकर्म लगातार जारी है। अब तक इनकी रचनाएं रचनाकार, स्वर्गविभा, हिन्दीकुंज, अनहद कृति आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं।


  ई.पत्रिका अनहद कृति की तरफ से विशेष मान्यता सम्मान 2014.2015 से अलंकृति ।प्रस्तुत है इनकी एक कविता
रवि आ 
 
अशोक बाबू माहौर की कविता
 
रवि आ 

रवि आ 
मेरे आँगन में 
धूप सुनहरी लेकर,
बच्ची मेरी 
जिद्दी 
रूठकर बहा रही आँसू
खड़ी,
उसे हँसा खिलखिला 
मासूम चेहरा 
नाजुक 
जगा उस पर 
सुबह की 
रेशमी किरणों से 
मुस्कान मधु
न मुझसे 
बात करती वह 
खींजती आँखें लाल कर 
नन्हा अँगूठा दिखाकर 
मैं चुप 
निहारता रहता 
हरकत 
प्यारी प्यारी
 
उफ़ ! मुझे 
धक्का देकर 
बुलाती तुम्हें
साथ खेलने 
बनाने मिटटी के 
गोंदे,खिलोने 
अजीब से 
अनोखे 
नाना तरह के

संपर्क- 
ग्राम-कदमन का पुरा
तहसील-अम्बाह,जिला-मुरैना (मध्य प्रदेश) 476111 
मो-09584414669