मंगलवार, 24 जनवरी 2017

अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’ की कविताएं





    अमरपाल सिंह आयुष्कर  की कविताएं जहां अनुभव की गहन आंच में रची पगी हैं वहीं अनगढ़ आत्मीयता की मौलिक मिठास लिए हुए हैं। आयुष्कर  के कविता की सबसे मूलभूत ताकत अपनी माटी, अपने अनमोल जन, गांव-जवार और बाग -बगिचे हैं  और साथ में चिन्ता है बेटियों को बचाने की । जहां कवि पला बढ़ा है वहीं की चीजों से कविता का नया शिल्प गढ़ता है और भाषा को तेज धार देता है जिससे कविता जीवंत हो उठती है।अब तक आयुष्कर  की रचनाएं वागर्थ ,बया ,इरावती ,दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान ,कादम्बनी, प्रतिलिपि, सिताबदियारा ,पुरवाई ,हमरंग आदि में  रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।  आकाशवाणी इलाहाबाद  से कविता , कहानी  प्रसारित
2001   में   बालकन जी बारी संस्था  द्वारा राष्ट्रीय  युवा कवि पुरस्कार एवं 2003   में   बालकन जी बारी -युवा प्रतिभा सम्मान से सम्मानित   परिनिर्णय  कविता शलभ  संस्था इलाहाबाद  द्वारा चयनित
आज प्रस्तुत है कवि मित्र आयुष्कर  की कविताएं
1 - संसार में उसको आने दो ..........

संसार में उसको आने दो
हक़ उसे भी अपना पाने दो
हर दौर गुजरकर देखेगी
खुद फ़ौलादी बन जाएगी
संस्कृति सरिता -सी बन पावन 
 दो कुल मान बढ़ाएगी
आधी दुनिया की खुशबू भी
अपने आँगन में छाने दो
 संसार में उसको आने दो
हक़ उसे भी अपना पाने दो

तुम वसुंधरा दे दो मन की
खुद का आकाश बनाएगी
इतिहास रचा देगी पलपल
बस थोड़ा प्यार जो पाएगी
हर बोझ को हल्का कर देगी
उसको मल्हार - सा गाने दो
संसार में उसको आने दो
हक़ उसे भी अपना पाने दो


उसका आना उत्सव होगा
जीवनबगिया  मुस्काएगी
 मन की  घनघोर निराशा को 
उसकी हर किलक भगाएगी
चंदामामा की प्याली में
उसे पुए पूर के खाने दो
संसार में उसको आने दो
हक़ उसे भी अपना पाने दो

जाग्रत देवी के मंदिर- सा
हर कोना , घर का कर देगी
श्रध्दा के पावन भाव लिए
कुछ तर्क इड़ा - से गढ़  लेगी
अब  तोड़ रूढ़ियों के ताले
बढ़ खोल सभी दरवाजे दो

संसार में उसको आने दो
हक़ उसे भी अपना पाने दो |
 
 2- भैया !

भैया अम्मा से कहना
जिद थोड़ी  पापा से करना
मन  की बाबा से बाँच
डांट, दादी की खा लेना
मुझको बुला ले ना !
मुझको बुला ले ना !

रक्खे हैं मैंने, ढेर खिलौने
सपनों के गुल्लक ,तुझको  हैं  देने
घर मैं आऊँगी  ,बन के दिठोने
नेह  मन में जगा लेना
मुझको बुला ले ना !
कोख में  गुम हुई ,
फिर  कहाँ   आऊँगी 
दूजराखी के पल 
जी  नही   पाऊँगी
छाँव थोड़ी बिछा देना
मुझको बुला ले ना !


ईश वरदान हैं,बेटियां हैं दुआ
डूबती सांझ का ,दीप जलता हुआ ,
इक  नए युग सूरज,
सबके भीतर उगा देना
मुझको बुला ले ना !
मुझको बुला ले ना !

3  - बेटियां मेरे  गाँव की .....

बेटियां मेरे गाँव की.....
किताबों से कर लेतीं बतकही
घास के गट्ठरों में खोज लेंतीं
अपनीं शक्ति का विस्तार
मेहँदी के पत्तों को पीस सिल-बट्टे पर
चख लेंतीं जीवन का भाव
सोहर ,कजरी तो कभी बिआहू  ,ठुमरी की तानों में
खोज लेतीं आत्मा का उद्गम
भरी दोपहरी में  , आहट होतीं छाँव की
बेटियाँ , मेरे गाँव की..........................

द्वार के दीप से ,चूल्हे की आंच तक
रोशनी की आस जगातीं
पकाती रोटियाँ, कपड़े सुखातीं  ,
उपले थाप मुस्कुरातीं
जनम ,मरण ,कथा ,ब्याह 
हो आतीं सबके द्वार ,
बढ़ा आतीं रंगत मेहँदी, महावर से
विदा होती दुल्हनों के पाँव की
बेटियाँ मेरे गाँव की ...........................

किसके घर हुए ,दो द्वार
इस साल  पीले होंगे , कितने  हाथ
रोग -दोख ,हाट - बाज़ार 
सूंघ  आतीं ,क्या उगा चैत ,फागुन , क्वार
थोड़ा दुःख निचोड़ ,मन हलकातीं ,
समेटते हुए घर के सारे काज
रखती हैं खबरहर ठांव की
बेटियाँ मेरे गाँव की ................................
जानतीं - विदा हो जायेंगी एक दिन
 नैहर रह लेगा तब भी , उनके बिन
धीरेधीरे भूल जातें हैं सारे ,
रीत है इस गाँव के बयार की
फिर भी बार - बार बखानतीं
झूठसच  बड़ाई जंवार की
चली आती हैं पैदल भी
बाँधने दूर से ,डोरी प्यार की
भीग जातीं ,सावन के  दूबसी
जब मायके से आता  बुलावा
भतीजे के मुंडन , भतीजी की शादी ,
गाँव के ज्योनार, तीज ,त्यौहार की
भुला सारी नीम - सी बातें
बिना सोये गुजारतीं ,कितनी रातें
ससुराल के दुखों को निथारतीं
मायके की राह , लम्बे डगों नापतीं
चौरस्ता ,खेतखलिहान ,ताकतीं
बाबा ,काकी ,अम्मा, बाबू की बटोर आशीष
पनिहायी आँखों , सुख-दुःख बांटतीं
कालीमाई थान पर घूमती हुई फेरे
 सारे गाँव की कुसल - खेम मांगतीं
 भोली , तुतली दीवारों के बीच नाचतीं
समोती  अपलक उन्हें ,बारबार पुचकारतीं
देखकर चमक जातींछलकी  आँखे
फलता- फूलता  ,बाबुल का संसार
दो मुट्ठी  अक्षत ,गुड़ ,हल्दी, कुएं की दूब से
भर आँचल अपना , चारों ओर  पसारतीं
बारीबारी पूरा गाँव  अंकवारती
मुड़ - मुड़ छूटती राह निहारतीं
बलैया ले , नज़र उतारतीं
सच कहूं ...................................
दुआएं उनकी ,पतवार हैं नाव की
बेटियाँ मेरे गाँव की .................|
संपर्क-खेमीपुर, अशोकपुर , नवाबगंज जिला गोंडा , उत्तर - प्रदेश  
 मोबाईल न. 8826957462     

रविवार, 22 जनवरी 2017

एक छोटी सी चिड़िया : आयुषी उनियाल

















कविता


एक छोटी सी चिड़िया थी,
किसी आंगन की चहचहाती गुड़िया थी
सपनों का ताना बाना बुनती थी,
अरमानों का तिनका लकर
अलग अलग रंगो से
अपना प्यारा घोंसला सजाती थी
न जाने कब वो इक दिन
एक शिकारी का शिकार बन जाए
आँखो में आंसू छिपाए
दिल में अरमान दबाए
शिकारी से प्राण बचाकर
बस इतना कह कर रह गयी
कि मेरे मन की बात मेरे मन में रह गयी
न जाने अब किसका शिकार बनूं
यह डरा हुआ अरमान अपने दिल में छुपाए
यह सोचती हुई कि
अब कैसे अपने प्राण बचाएं
इतना सोच उड़ती हुई
कि एक अजनबी से मिल जाएं
सोच,जो कर सके मदद उसकी
शिकारी उसके प्राण बचाए
मन ही मन मुस्कराती हुई
सोचती हुई कि बच गए प्राण उसके
अचानक टूट गया सपना उसका
देख के वह बहुत घबरायी
कि मेरे मन की बात मेरे मन में रह गयी।

संपर्क -
आयुषी उनियाल
कक्षा 8  रा 0 0 का0 गौमुख
टिहरी गढ़वाल , उत्तराखण्ड 249121

रविवार, 8 जनवरी 2017

आग भरो ठंडे शब्दों में - प्रेम नंदन


 










 जन्म - 25 दिसम्बर 1980, फरीदपुर, हुसेनगंज, फतेहपुर (उ0प्र0) |
शिक्षा - एम0ए0(हिन्दी), बी0एड0। पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
परिचय - लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। तीन-चार   वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा लगभग इतने ही वर्षों तक इधर-उधर ‘भटकने’ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन|
प्रकाशन- कवितायें, कहानियां एवं  लघुकथायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्लॉगों में प्रकाशित।


1-तुम्हारा रंग




हर पल

हर दिन

हर मौसम में

बदलते रहते हो रंग मेरे दोस्त !

पता है तुम्हें ...

आजकल 

क्या है तुम्हारा रंग ?
                                    

2- आग भरो ठंडे शब्दों में

आग भरो ठंडे शब्दों में

बढ़ने दो भाषा का ताप

ठंडी भाषा

ठंडे शब्द 

हो जाते हैं घोर नपुंसक

इनसे बढ़ता है संताप

अगर भगाना है अॅधियारा 


खुश रखना समाज सारा 

तो कवि सुनो और ये समझो

आग भरो ठंडे शब्दों में

बढ़ने दो भाषा का ताप !

संपर्क – उत्तरी शकुन नगर, सिविल लाइन्स, फतेहपुर, उ०प्र०-212601,
दूरभाष– 09336453835
ईमेल - premnandan10@gmail.com
ब्लॉग – aakharbaadi.blogspot.in